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एक दिन लक्ष्मीजी की बड़ी बहन ज्येष्ठा ने लक्ष्मीजी से पूछा, ‘सुंदरता में हम दोनों बराबर हैं, फिर भी लोग तुम्हारा आदर करते हैं और मैं जहाँ भी जाती हूँ वहाँ उदासी छा जाती है. हम दोनों सगी बहनें हैं लेकिन लोग तुम्हें पाने के लिए लालायित रहते हैं जबकि मुझे उनकी घृणा का शिकार होना पड़ता है. ऐसा क्यों?’
लक्ष्मीजी ने हँसकर कहा, ‘सगी बहन या सुंदरता में बराबरी की होने से ही आदर नहीं मिलता. उसके लिए कर्म भी करने पड़ते हैं. मैं जहां जाती हूं सुख-साधन जुटा देती हूँ. इसलिए मेरी पूजा होती है. तुम जिस घर में जाती हो उसे ग़रीबी, रोग और आपदा सहनी पड़ती है. इसी वजह से लोग तुमसे घृणा करते हैं. आदर पाना है तो दूसरों को सुख पहुँचाओ. ज्येष्ठा को लक्ष्मीजी की बात चुभ गई.
उन्होंने क्रोध में कहा, ‘लक्ष्मी! तुम मुझसे सिर्फ उम्र में ही छोटी नहीं हो बल्कि प्रभाव में भी छोटी हो. मुझे उपदेश मत दो. तुम्हें अपने वैभव का अहंकार है तो मेरा भी अपना प्रभाव है. मैं जब अपना प्रभाव दिखाने पर आ जाऊँ तो तुम्हारी सेवा से बने करोड़पति को पल भर में भिखारी बना सकती हूं. ‘
लक्ष्मीजी कहने लगीं, ‘बहन! सच है कि तुम उम्र में बड़ी हो लेकिन जहाँ तक प्रभाव की बात है, जिसको तुम भिखारी बनाओगी उसे मैं दूसरे दिन रंक से फिर राजा बना दूँगी.’ दोनों बहनों में खूब कहासुनी हुई.
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