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आकाश में ग्रह और नक्षत्रों अधीरता से प्रतीक्षा कर रहे थे कि किस मुहूर्त और काल में श्रीहरि माता देवकी के गर्भ से प्रकट होते हैं. समस्त आकाश मंडल अप्सराओं और गंधर्वों द्वारा किए जा रहे गान और वादन से गूंज रहा था.
भाद्रपद मास में कृष्णपक्ष की अष्टमी तिथि, रोहिणी नक्षत्र में मध्यरात्रि में भगवान ने गर्भ का त्याग किया और साक्षात प्रकट हुए. चतुर्भुझ भगवान शंख, चक्र, गदा, पदम से सुशोभित बालरूप में थे.
उनके तेज से कारागार में रात में दिन के समान प्रकाश हो गया. वसुदेव साक्षात उनके चरणों में गिर गए. भगवान आ गए हैं यह सोचकर कारागार में भी उनका मन ऐसे प्रसन्न हो रहा था जैसे वह संसार के एकछत्र राजा है.
माता देवकी बोलीं- प्रभु आपका चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन तो पापियों के भी समस्त पापों का अंत करने वाला है. इसलिए हे प्रभु आप इस रूप को समेटकर बालरूप धर लें क्योंकि आपका दुर्लभ चतुर्भुज स्वरूप का दर्शन तो उन्हें ही प्राप्त हों जो ध्यान करें.
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