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वीर बर्बरीक ने अपने तुणीर से एक बाण निकाला. उसमे सिंदूर जैसे भस्म को भर दिया. धनुष की प्रत्यंचा को कान तक खींचकर छोड़ दिया. उस बाण से जो भस्म उड़ा उसने समस्त वीरों के मर्मस्थल को छू लिया. केवल पांच पांडवों, अश्वत्थामा और कृपाचार्य पर उस बाण का प्रभाव नहीं पड़ सका.

वीर बर्बरीक ने कहा, ‘देखिए, मैंने इस बाण के प्रभाव से युद्धस्थल में विराजमान समस्त योद्धाओं के मर्म को जान लिया है. अब इस दूसरे बाण से इन सभी को यमलोक पहुँचा दूँगा. आप सबको आपके धर्म की सौगंध है कि मेरे होते कोई अस्त्र न उठाए.”

वीर बर्बरीक ने जैसे ही यह बात कही, वैसे ही श्रीकृष्ण ने कुपित होकर सुदर्शन चक्र से बर्बरीक का सिर काट दिया. वहां उपस्थित सभी वीर विस्मय में पड़ गए. पांडवों में हाहाकार छा गया. घटोत्कच तो मूर्छित हो गए. तभी बर्बरीक की आराध्य 14 देवियां और सिद्ध अम्बिकाएं प्रकट हुईँ. वे पुत्र शोक से संतप्त घटोत्कच को सांत्वना देने लगीं.

सिद्ध अम्बिकाओं ने ऊंचे स्वर में शिरोच्छेदन के रहस्य को उजागर करते हुए कहा-” हे पांडुपुत्रों! देवसभा में यह वीर शिरोमणि सूर्यवर्चा नामक यक्षराज था.देवसभा में अभिमान से भरे वचन बोलने के कारण अभिशप्त यक्षराज ने बर्बरीक के रूप में जन्म लिया था. ब्रह्माजी के अभिशापवश इसका शिरोच्छेदन भगवान श्रीकृष्ण द्वारा पूर्व-नियोजित था. अतः आपलोग शोक न करे और बर्बरीक के पूर्वजन्म की कथा सुनिए.

(स्कन्दपुराण के माहेश्वर खंड अंतर्गत द्वितीय उपखंड “कौमारिका खंड” की कथा. बर्बरीक के पूर्वजन्म की कथा तीसरे खंड में पढ़ें)

संकलनः महावीर प्रसाद सर्राफ “टीकम”

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प्रभु शरणम्

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