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राजा अंबरीश भगवान विष्णु के महान भक्त थे. उनकी कीर्ति देवलोक तक में फैली थी. एक बार, अंबरीश ने एकादशी व्रत किया. एकादशी का व्रत अगले दिन यानी द्वादशी को तोड़ा जाता है.

व्रत तोड़ने के बाद साधुजनों को भोजन कराना होता है. द्वादशी को जब अंबरीश के व्रत तोड़ने का समय हुआ, वहां दुर्वासा ऋषि पधारे. अंबरीश ने दुर्वासा से पहले भोजन करने का आग्रह किया.

दुर्वासा ने अंबरीश का आग्रह स्वीकार कर लिया. उन्होंने अंबरीश से कहा कि वह स्नान करने नदी तक जा रहे हैं. जब तक वह स्नान करके नहीं आते, तब तक अंबरीश अपना व्रत न तोड़ें.

काफी समय बीत गया, लेकिन दुर्वासा नहीं आए. दुर्वासा बड़े ही मनमौजी ऋषि थे. कई बार वह यजमान को भोजन तैयार करने का आदेश देकर चले जाते थे और लौटकर आते ही नहीं थे.

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