कार्तिक शुक्लपक्ष की द्वितीया तिथि को भाई दूज या भैया दूज या यम द्वितीया के नाम से मनाया जाता है. भाई की लंबी उम्र के लिए बहनें भाई दूज या भैया दूज पर कुछ विशेष पूजा करती हैं. जानिए भाई दूज या भैया दूज की पूजा विधि,
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भाई दूज या भैया दूज उत्तर और मध्य भारत में यह पर्व भातृ द्वितीया या भैया दूज के नाम से जाना जाता है तो पूर्व भारत में इसे ‘भाई-कोटा’ और पश्चिम भारत में ‘भाईबीज’ और ‘भाऊबीज’ कहलाता है.
इस पर्व पर बहनें प्रायः गोबर से मांडना बनाती हैं. उसमें चावल और हल्दी से चित्र बनाकर सुपारी, फल, पान, रोली, धूप, मिष्ठान्न आदि रखकर दीप जलाती हैं. इस दिन यम द्वितीया की कथा भी सुनी जाती है. इसी दिन कायस्थ लोग चित्रगुप्त पूजा भी करते हैं.
भाई दूज या भैया दूज की इस पोस्ट में आप जानेंगेः
- भाई दूज या भैया दूज की पूजा की विधि
- भाई दूज या भैया दूज की प्रचलित कथाएं जिसे बहनों को भाई को जरूर सुनाना चाहिए.
कार्तिक मास के सभी प्रमुख पर्वों जैसे भाई-दूज, चित्रगुप्त पूजा, छठ पूजा, तुलसी विवाह, एकादशी, कार्तिक माहात्म्य एवं साल भर के सभी हिंदू पर्व त्योहारों की अनसुनी कथाएं, वेद-पुराण की कथाएं, राशिफल, रामायण, हिंदू पंचांग, रामशलाका प्रश्नावली,सभी देवी-देवताओं के मंत्र, अनुष्ठान की विधि पढ़ने के लिए प्रभु शरणम् ऐप्प डाउनलोड कर लें. इन कथाओं को पढकर आपका मन गदगद हो जाएगा. प्रभु शरणम् धर्म-प्रचार के लिए बनाया गया है और एकदम फ्री है. हमारा मकसद है हिंदू धर्म का इंटरनेट की दुनिया में प्रचार-प्रसार. आप भी इसे जुड़ें. यह आपकी जरूरत न बन जाए तो कहिएगा. यदि पसंद न आए तो डिलिट कर दीजिएगा. 5 mb का छोटा सा ऐप्प है वह भी फ्री है. एक बार देखिए तो सही.
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भाई दूज या भैया दूज की कथा जिसे बहनें भाई को जरूर सुनाएंः
सात भाइयों की इकलौती बहन की कथा भाई दूज या भैया दूज की सबसे लोकप्रिय लोककथा है. इसमें बहन ने कालरूपी नाग से अपने सात भाइयों के प्राणों की रक्षा की थी. देहाती अंचलों में इस कथा का श्रवण करने के बाद ही पूजा पूर्ण होती है. अभी पढ़ें भाई दूज या भैया दूज की वही कथा-
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एक बुढ़िया थी. उसके सात बेटे और एक बेटी थी. बेटी की शादी हो चुकी थी. जब भी बुढ़िया के बेटों की शादी होती, फेरों के बाद एक नाग आता और उसके बेटे को डस लेता था. बेटा वहीं मर जाता और बहू विधवा हो जाती. इस तरह उसके छह बेटे मर गए. सातवें की शादी होनी बाकी थी. अपने छह बेटों के मर जाने के दुख से बुढ़िया रो-रो के अंधी हो गई थी.
भाई दूज या भैया दूज आया तो बेटे ने मां से कहा कि वह बहिन के ससुराल दूज पर जाना चाहता है. मां से आशीर्वाद लेकर वह बहन के घर चला. उसे रास्ते में एक सांप मिला. सांप उसे डसने को हुआ.
भाई बोला- तुम मुझे क्यों डसना चाहते हो? सांप बोला- मैं तुम्हारा काल हूँ और मुझे तुमको डसना है.
भाई बोला- मेरी बहन मेरा इंतजार कर रही है. मैं जब तिलक कराके वापस लौटूंगा तब तुम मुझे डस लेना.
सांप हंसने लगा- भला आज तक कोई अपनी मौत के लिए लौटकर आया है, जो तुम आओगे.
भाई ने कहा- अगर तुझे यकीन नहीं है तो तू मेरे झोले में बैठ जा. जब मैं अपनी बहिन से तिलक करा लूं तब तू मुझे डस लेना. सांप ने ऐसा ही किया.
भाई बहिन के घर पहुंच गया. दोनों बड़े खुश हुए. इतने में बहिन के बच्चे आ गए और बोले-मामा मामा हमारे लिए क्या लाए हो?
भाई बोला- मैं तो कुछ नही लाया.
बच्चों ने वह झोला ले लिया जिसमें सांप था. जैसे ही उसे खोला, उसमें से हीरे का हार निकला.
बहिन ने कहा- भैया मेरे लिए इतना सुंदर हार लाए हो मुझे बताया भी नहीं.
भाई बोला- बहन तुम्हें पसंद है यह हार तो इसे रख लो. मेरे तो अब ये किसी काम आएगा नहीं.
दूज मनाकर अगले दिन भाई जाने को तैयार हुआ और बहन से रास्ते के लिए कुछ खाना बना देने को कहा. बहन ने उसके लिए लड्डू बना के एक डब्बे मे रख के दे दिए. भाई सफर पर चला तो कुछ दूर जाकर थककर एक पेड़ के नीचे सो गया.
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उधर बहिन के बच्चों को जब भूख लगी तो माँ से खाना मांगने लगे. खाना बनने में देर थी. तो बच्चों ने मामा के लिए बनाए लड्डू मांगे. उनकी मां ने कहा कि लड्डू बनाने के लिए थोड़ा बाजरा पीसा था. लड्डू तो नहीं हैं लेकिन चक्की में बाजरा हो उसे ही थोड़ा खा लो.
बच्चे चक्की में गए तो देखा कि चक्की में सांप मरा पड़ा है जो शायद अंधेरे में गलती से आंटा पीसते समय दबकर मर गया हो. ये बात मां को बताई तो वह बावली सी होकर भाई के पीछे भागी.
रास्ते भर लोगों से पूछती की किसी ने मेरा भाई देखा है. तब एक ने बताया कि कोई लेटा तो है पेड़ के नीचे, देख ले वही तो नहीं. भागी-भागी पेड़ के नीचे पहुंची. अपने भाई को नींद से उठाया और पूछा कहीं तूने लड्डू तो नही खाए.
भाई ने गुस्से में लड्डू उसको देकर कहा- नहीं खाए मैने. थोड़े लड्डू ही तो दिए थे, उसके लिए भी पीछे पीछे आ गयी.
बहन बोली- नहीं भाई, तू झूठ बोल रहा है, ज़रूर तूने खाया है. अब तो मैं तेरे साथ चलूंगी.
अब दोनों साथ चल दिए. चलते चलते बहिन को प्यास लगी. वह पानी पीने एक बस्ती में गई. पानी पीकर लौट रही थी तो रास्ते में देखा कि एक जगह ज़मीन में छह शिलाएं गड़ी हैं और एक शिला बिना गाड़े रखी थी.
वहां पर एक बुढ़िया भी बैठी थी. उसने एक बुढ़िया से पूछा कि ये शिलाएं कैसी हैं? उस बुढ़िया ने बताया कि एक बुढ़िया है. उसके सात बेटे थे. छह बेटे तो शादी के मंडप में ही मर चुके हैं, तो उनके नाम की ये शिलाएँ ज़मीन में गड़ी हैं. अभी सातवें की शादी होनी बाकी है. जब उसकी शादी होगी तो वह भी मंडप में ही मर जाएगा, तब यह सातवी सिला भी ज़मीन में गड़ जाएगी. यह सुनकर बहिन समझ गयी ये सिलाएँ किसी और की नही बल्कि उसके भाइयों के नाम की हैं.
उसने उस बुढ़िया से अपने सातवे भाई को बचाने का उपाय पूछा. बुढ़िया ने उसे बतला दिया कि वह अपने सातवे भाई को केसे बचा सकती है. सब जानकर वह वहां से अपने बाल खोलकर पागलों की तरह अपने भाई को गालियां देती हुई चली.
भाई के पास आकर बोलने लगी- भाई तू तो जलेगा, कुटेगा, मरेगा.
भाई उसके ऐसे व्यवहार को देखकर चौंक गया. उसे कुछ समझ नही आया. दोनों भाई बहिन मां के घर पहुंच गए. थोड़े समय के बाद भाई के लिए रिश्ते आने लगे. उसकी शादी तय हो गई.
जब भाई को सेहरा पहनाने लगे तो वह बोली- इसको क्यों सेहरा बंधेगा, सेहरा तो मैं पहनूंगी. ये तो जलेगा, मरेगा. सब लोगों ने परेशान होकर सेहरा बहन को दे दिया.
बहन ने देखा उसमें कलंगी की जगह सांप का बच्चा था. बहिन ने उसे निकालकर फेंक दिया.
अब जब भाई घोड़ी चढ़ने लगा तो बहिन फिर बोली- ये घोड़ी पर क्यों चढ़ेगा, घोड़ी पर तो मैं बैठूंगी. ये तो जलेगा, मरेगा, इसकी लाश को चील कौवे खाएंगे. सब लोग बहुत परेशान थे. घोड़ी पर भी वही चढ़ी.
अब जब बारात चलने को हुई तब बहन बोली- ये क्यों दरवाजे से निकलेगा, ये तो पीछे के रास्ते से जाएगा. दरवाजे से तो मैं निकलूंगी. जब वह दरवाजे के नीचे से जा रही थी तो दरवाजा अचानक गिरने लगा.
बहन ने एक ईंट उठाकर अपनी चुनरी में रख ली. दरवाजा वही का वहीं रुक गया. सब लोगों को बड़ा अचंभा हुआ. रास्ते में एक जगह बारात रुकी तो भाई को पीपल के पेड़ के नीचे खड़ा कर दिया.
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बहन कहने लगी- ये क्यों छांव में खड़ा होगा. ये तो धूप में खड़ा होगा, छांव में तो मैं खड़ी होगी. जैसे ही वह पेड़ के नीचे खड़ी हुई, पेड़ गिरने लगा. बहन ने एक पत्ता तोड़ कर अपनी चुनरी में रख लिया, पेड़ वही की वही रुक गया.
अब तो सबको विश्वास हो गया की ये बावली कोई जादू टोना सीखकर आई है जो बार-बार अपने भाई की रक्षा कर रही है. ऐसे करते-करते फेरों का समय आ गया.
जब दुल्हन आई तो उसने दुल्हन के कान में कहा- अब तक तो मैंने तेरे पति को बचा लिया. अब तू ही अपने पति को और साथ ही अपने मरे हुए जेठों को बचा सकती है.
फेरों के समय एक नाग आया. वह जैसे ही दूल्हे को डंसने को हुआ दुल्हन ने उसे एक लोटे में भर के उपर से प्लेट से बंद कर दिया. थोड़ी देर बाद नागिन आई और दुल्हन से बोली- तू मेरा पति छोड़.
दुल्हन बोली- पहले तू मेरा पति छोड़ फिर सोचती हूं.
नागिन ने कहा- ठीक है मैंने तेरा पति छोड़ा. दुल्हन बोली कि तीन बार बोलकर कसम खा. नागिन ने ऐसा ही किया.
दुल्हन बोली- एक मेरे पति से क्या होगा, हंसने-बोलने के लिए जेठ भी तो होना चाहिए, एक जेठ भी छोड़. नागिन ने जेठ के भी प्राण लौटा दिए. फिर दुल्हन ने कहा- एक जेठ से लड़ाई हो गयी तो! एक और जेठ छोड़. वह विदेश चला गया तो! इसलिए तीसरा जेठ भी छोड़.
इस तरह एक-एक करके दुल्हन ने अपने 6 जेठ जीवित करा लिए. उधर रो-रोकर बुढ़िया का बुरा हाल था कि अब तो मेरा सातवां बेटा भी बाकी बेटों की तरह मर जाएगा. गांव वालों ने उसे बताया कि उसके सात बेटे और बहुएं आ रही हैं.
तो बुढ़िया बोली- गर यह बात सच हो तो मेरी आंखो की रोशनी वापस आ जाए और मेरे सीने से दूध की धार बहने लगे. ऐसा ही हुआ. अपने सारे बहू बेटों को देखकर वह बहुत खुश हुई.
इस खुशी में सब बहन को भूल गए थे. मां को याद आई तो वह उसे ढूंढने लगी. देखा तो वह भूसे की कोठरी में सो रही थी. सभा भाइयों को सही सलामत देखकर वह अपने घर को चली. उसके पीछे पीछे सारी लक्ष्मी भी जाने लगीं.
बुढ़िया ने कहा- बेटी, तू एक बार पीछे मूड के देख! तू अपने साथ सारी लक्ष्मी लेकर चली जाएगी तो तेरे भाई भाभी क्या खाएंगे? तब बहिन ने पीछे मुडके देखा और कहा- जो मां ने अपने हाथों से दिया वह मेरे साथ चले, बाकी का धन भाई भाभी के पास रहे.
इस तरह एक बहिन ने अपने भाई की रक्षा की.
इस कथा को सुनने के बाद बहनें गोबर से बने भाई के अनिष्ट को कूटती हैं. भाई को कोसती हैं फिर कांटा अपनी जीभ में चुभाती है. वहां से कूटा हुआ चना प्रसाद के रूप में लेकर आती हैं जिसे भाई पानी के साथ निगल जाते हैं.
भाई दूज या भैया दूज की एक अन्य कथा यम और यम की बहन यमुना की भी है. उसे भी आप पढ़ सकते हैं.
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