आत्मदेव ने अपना दुखड़ा रो दिया. तेजस्वी सन्यासी ने आत्मदेव की ललाट देखकर कहा– “तुम्हारे पूर्वजन्म के कर्मों के कारण सन्तान योग नहीं है. इसलिए यह विचार छोड़ो और भगवत् भजन करो.”
आत्मदेव ने कहा कि यदि उसके संतान योग नहीं है तो जीने का क्या फायदा. वह प्राण त्याग देगा. उसका हठ देखकर सन्यासी ने उसे एक दिव्य फल देकर कहा इसे पत्नी को खिला देना.
आत्मदेव घर लौट आए और सारी कहानी बताकर वह फल पत्नी को खाने के लिए दिया. किन्तु उस दुष्टा ने सोचा कि संतान पैदा करने और पालने में बड़ा कष्ट है.
इसलिए उसने फल को खाने के बजाय कहीं छुपाकर रख दिया और आत्मदेव से झूठ में कह दिया कि उसने फल खा लिया है.
कुछ दिनों बाद धुंधुली की बहन मृदुली उससे मिलने आयी. मृदुली के बच्चे थे. धुंधुली ने उससे संतान उत्पत्ति के कष्ट के बारे में पूछा फिर फल वाली बात बता दी.
परंतु उसे भय था कि यदि उसकी बात खुल गई तो आत्मदेव उसे त्याग देगा. मृदुली ने अपनी बहन से कहा- मेरे गर्भ में जो शिशु है, पैदा होने के बाद तुझे सौंप दूंगी. तब तक तू गर्भवती होने का स्वांग करती रह.
मृदुली ने कहा कि वह अपने प्रसव के बाद कह देगी कि उसे मरा हुआ बच्चा पैदा हुआ. फिर वह बच्चा धुंधुली को दे देगी. बहन की राय पर धुंधुली ने फल गाय को खिला दिया.
सब कुछ योजना अनुसार हुआ. मृदुली ने पुत्र-जन्म के बाद उसे धुंधुली को सौंप दिया. और बालक के मृत्यु की सूचना फैला दी. पुत्र के जन्म से आत्मदेव प्रसन्न थे.