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उसे वरदान था कि युद्धभूमि में उसकी एक हजार भुजाएं हो जाती थीं जिनसे वह युद्ध करता तो सामने खड़ी अनंत सेना भी डरकर भाग जाती थी. इसलिए उसे सहस्त्रबाहु और सह्सत्रार्जुन का नाम भी मिला.

सहस्त्रबाहु ने 85 हजार वर्ष तक छह इंद्रियों से अक्षय विषयों का भोग किया. उसके कई हजार वीर पुत्र हुए. उसके पुत्रों ने परशुरामजी के पिता जमदग्नि का वध कर दिया. क्रोधित होकर परशुराम ने उसके वंश का नाश किया.

उसके सिर्फ चार पुत्र जयध्वज, शूरसेन, मधु और उर्जित ही बचे. जयध्वज के पुत्र का नाम था तालजंघ. तालजंघ के 100 पुत्र हुए जो तालजंघ क्षत्रिय कहलाए. महर्षि और्वि की शक्ति से राजा सगर ने तालजंघ क्षत्रियों का संहार किया था.

मधु के भी 100 पुत्र थे. उनमें सबसे बड़े और पराक्रमी थे वृष्णि. यदु, मधु और वृष्णि के नाम से ही यह वंश यादव, माधव और वार्ष्णेय नाम से प्रसिद्ध हुआ.

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