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प्रभु ने सोचा चलो आज यह कार्य भी कर देते हैं. उनहोंने यमुनाजी में उतरने की ठानी. कालिया यमुना में एक कुण्ड कालियदह में रहता था. उसके विष का ऐसा प्रभाव था कि उसके कारण जल खौलता रहता था.

उस कुंड के समीप नदी के ऊपर से उड़ने वाले पक्षी तक झुलसकर उसमें गिर जाया करते थे. उसके विषैले जल की का स्पर्श करके चलने वाली वायु जिन वृक्ष लताओं को छूती वे भी जल जाती थीं.

भगवान ने अपनी कमर कसी और एक बहुत ऊंचे कदम्ब के वृक्ष पर चढ़ गए और फिर वहां से ताल ठोंककर विषैले जल में कूद पड़े. यमुनाजी तो प्रभु के स्पर्श से पुलकित और निर्मल हो गईं.

उनका जल सांप के विश के कारण पहले से ही खौल रहा था. उसकी तरंगें लाल-पीली और अत्यन्त भयंकर उठ रही थीं. श्रीकृष्ण के कूद पडऩे से वह और भी उछाल मारने लगीं. कालियदह का जल इधर-उधर उछलकर चार सौ हाथ तक फैल गया.

तट पर खड़े ग्वालबाल चिल्लाने लगे. उन्हें भयंकर विष से भरे जल में कूदे अपने कान्हा की चिंता हो रही थी. ग्वालबालों की दशा ऐसी हो गई जैसे दोबारा उनके प्राण छीन लिए गए हों.

श्रीकृष्ण कालियदह में कूदकर मतवाले गजराज के समान जल उछालने लगे. कालिया नाग ने वह आवाज सुनी और देखा कि कोई उसको चुनौती दे रहा है तो वह क्रोध से जलने लगा. वह क्रोध में भरा श्रीकृष्ण के सामने आ गया.

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