आप बिना इन्टरनेट के व्रत त्यौहार की कथाएँ, चालीसा संग्रह, भजन व मंत्र , श्रीराम शलाका प्रशनावली, व्रत त्यौहार कैलेंडर इत्यादि पढ़ तथा उपयोग कर सकते हैं.इसके लिए डाउनलोड करें प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प.
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
कंस के भेजे पूतना और तृणावर्त राक्षसों का श्रीकृष्ण ने उद्धार कर दिया. अपने बालक के साथ लगातार होते अपशकुन से यशोदा मैया घबराई थीं. वह तरह-तरह के उपाय करतीं.

गंगाचार्य यदुवंशियों के कुल पुरोहित थे. वसुदेवजी ने उनसे प्रार्थना की कि वह गोकुल जाकर नंदजी के पुत्रों का नामकरण संस्कार करा दें. श्रीगंगाचार्य समझ गए कि ये वसुदेव के ही पुत्र हैं. उन्होंने इस बात को गोपनीय रखने का वचन दिया और व्रज गए.

नंदजी उन्हें देखकर बड़े प्रसन्न हुए. नंदजी ने उनसे दोनों बच्चों के नामकरण आदि संस्कार संपन्न कराने की विनती की. गंगाचार्य आए तो थे इसी कार्य से लेकिन उन्हें यह बात प्रकट भी नहीं करनी थी.

गर्गाचार्यजी ने कहा- मैं यदुवंशियों का पुरोहित हूं. नामकरण संस्कार कराने से कंस यह मानने लगेगा कि ये देवकी के ही पुत्र हैं. वह पहले से बी घबराया हुआ है. तुम्हारी व वसुदेव की मैत्री है. वह दुर्बुद्धि इन्हें वसुदेव पुत्र मानकर इनके अहित का प्रयास करेगा.

शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.

LEAVE A REPLY

Please enter your comment!
Please enter your name here