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वसुदेव देवकी को विवाह के बाद विदा कराके जाने लगे तो उनका चचेरे भाई कंस जो अपनी बहन देवकी से विशेष स्नेह रखता था, उसने रथ हांकने का निर्णय किया.
रथ में देवकी और वसुदेव को बिठाकर कंस स्वयं रथ हांकता मथुरा से लेकर चला. तभी आकाशवाणी हुई- कंस तू जिस बहन से इतना स्नेह करता है, इसकी आठवीं संतान तेरी मृत्यु का कारण बनेगी.
कंस ने आकाशवाणी को सुनते ही देवकी का वध करने के लिए तलवार निकाल ली और देवकी का वध करने ही वाला था. वसुदेव ने समझाया तुम्हें भय देवकी की आठवीं संतान से है, देवकी से नहीं. इसका वध मत करो.
वसुदेव ने उसे तरह-तरह से समझाया. उसकी खूब प्रशंसा की तो कंस थोड़ा नरम हुआ. वसुदेव ने कहा- मैं स्वयं देवकी के गर्भ से पैदा हुई संतानों को तुम्हारे पास रख आऊंगा. तुम एक नवविवाहित की हत्या का पाप न करो.
वसुदेव सत्यवादी और वचन के पक्के थे यह बात सभी जानते थे. उनके वचन से कंस को भरोसा हो गया. उसने देवकी को छोड़ दिया. कुछ समय बाद देवकी के गर्भ से पहली संतान ने जन्म लिया.
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Dhanayvad
अच्छा लगा ।