जिनके दर्शन से असाध्य रोग ठीक होते हैं, वे भगवान जगन्नाथ बीमार हुए हैं. भगवान यदि मानवस्वरूप धर रहे हैं, तो अल्पबुद्धि मानव भी उन्हें अपने जैसा मान रहा है. सोचें कितनी अनुपम भक्ति है. भक्त भगवान एक भाव में.
भगवान जगन्नाथ बीमार हो गए हैं. यह सुनकर किसी को हंसी आ सकती है. भगवान क्यों बीमार होंगे. वह तो बीमारियां दूर करते हैं. यह भक्तों का भगवान के प्रति भाव है. भगवान जगन्नाथ शिशुरूप में हैं तो भक्त उनकी सेवा वैसे ही करते हैं. इस परंपरा की पृष्ठभूमि राजा इंद्रद्युम्न द्वारा भगवान के अभिषेक में मिलती है. मैंने आपको जगन्नाथ रथयात्रा की स्कंदपुराण आधारित सबसे प्रमाणिक कथा सुनाई थी. वह कथा आप फिर से पढ़ें तो समझना आसान हो जाएगा.
राजा इंद्रद्युम्न ने जब देखा कि भगवान की प्रतिमा तो अधूरी ही रह गई और शिल्पकार लुप्त हो गए हैं. वह विलाप करने लगे. भगवान ने उन्हें प्रेरणा दी कि विलाप न करो. यही होनी की ओर से तय था. मैंने नारद को वचन दिया था कि बालरूप में इसी आकार में पृथ्वीलोक पर विराजूंगा. फिर भगवान ने इंद्रद्युम्न को आदेश दिया- 108 घड़े के जल से मेरा अभिषेक करो. वह ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा तिथि थी.
ज्येष्ठ में गर्मी बहुत होती है. यदि कोई गहरे कुंए के ठंढे जल से स्नान कर ले तो उसे लू लगेगी ही. सर्दी-जुकाम भी होगा. भगवान जगन्नाथ ने जब भक्तों को कहा कि अब मैं बालरूप में तुम्हारे समक्ष प्रकट हो चुका हूं. तो भक्तों ने फिर बाल भगवान की सेवा शुरू की, बिलकुल बालक की तरह. भगवान जगन्नाथजी की कथा जब तक पूरी नहीं पढ़ेंगे वह रस नहीं आएगा. अगर पूरा रस लेना है, तो जरूर पढें- (भगवान जगन्नाथ यात्रा की पौराणिक कथा). लिंक नीचे है.
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ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा से अमावस्या यानी पंद्रह दिनों के लिए भगवान की सेवा की जाती है. मंदिर के पट बंद रहते हैं. भगवान को काढ़े का भोग लगाया जाता है. मौसमी फल, परवल का जूस और काढ़ा भगवान को बस यही मिलता है. भक्तों को दर्शन नहीं होते. काढ़ा और जूस भगवान को अर्पित करने के बाद प्रसाद रूप में बांटाजाता है. काली मिर्च, जायफल, इलायची, लौंग, चंदन और तुलसी से बनता है यह काढ़ा.
15 दिन के उपचार के बाद भगवान स्वस्थ होंगे. उनकी रथयात्रा निकाली जाएगी. भाई बलभद्रजी और बहन सुभद्रा के साथ अपनी मौसी रोहिणीजी के यहां भेंट करने जातें हैं. वहां सात दिन तक खूब आनंद करते हैं. वहां फिर उन्हें मालपुआ आदि विविध पकवान खिलाएं जाएंगे. भगवान की तबीयत फिर बिगड़ने लगेगी तो पथ्य दिया जाएगा. वे तुरंत स्वस्थ हो जाएंगे.
भगवान जगन्नाथ की रथयात्रा भव्यता के लिए जगतप्रसिद्ध तो है ही, शास्त्रों में इसके माहात्म्य का बखान है. स्कन्द पुराण में आता है कि रथयात्रा में जो व्यक्ति जगन्नाथजी का नाम संकीर्तन करता गुंडीचा नगर तक जाता है वह जन्म-मरण से मुक्त हो जाता है. जो जगन्नाथजी का दर्शन प्रणाम करते लोट-लोट कर जाते हैं वे भगवान श्रीविष्णु के उत्तम धाम जाते हैं. गुंडिचा मंडप में रथ पर विराजमान श्रीकृष्ण, बलराम और सुभद्राजी के दक्षिण दिशा को आते हुए दर्शन से मोक्ष मिलता है.
कहते हैं, मौसी के घर जनकपुर में भगवान जगन्नाथ सभी दस अवतार धारण करते हैं. यही वह समय होगा जब भगवान अवतार रूप में भी सामान्य मनुष्य जैसा व्यवहार करेंगे. रथयात्रा के तीसरे दिन पंचमी को लक्ष्मीजी भगवान जगन्नाथ को ढूढ़ती यहां पहुंचती है. तब द्वैतापति या दैत्यपति दरवाज़ा बंद कर देते हैं. (कौन हैं ये द्वैतापति या दैत्यपति, क्यों इन्हें भी इस पूजा का अधिकार,पढ़ें जगन्नाथजी की कथा)
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भगवान से मिलने से लक्ष्मीजी को रोका जाएगा तो वह क्रोधित होंगी. गुस्से में लक्ष्मीजी भगवान के रथ का पहिया तोड़ देंगी. वहां से लक्ष्मीजी अपने घर को चली जाएंगी. लक्ष्मीजीका एक मंदिर है, वहीं चली जाती है.
भगवान जगन्नाथजी को पता चलेगा. तो वह लक्ष्मीजी को मनाने जाएंगे. जैसे कोई पति, पत्नी को मनुहार से मनाता है वैसे ही भगवान लक्ष्मीजी को मनाएंगे. उनसे क्षमा मागेंगे, अनेक उपहार देकर उन्हें मनाने की कोशिश करेंगे.
ये लीलाएं रथयात्रा के दौरान जगन्नाथ पुरी में आयोजित की जाती हैं. इस आयोजन में द्वैतापति जगन्नाथजी की भूमिका के संवाद बोलते हैं तो, देवदासी लक्ष्मीजी की भूमिका के संवाद. भूलोक पर अलौकिक दृश्य हो जाता है. ऐसा लगता है आकाश से देवतागण भी इसका रस ले रहे हैं.
भगवान जगन्नाथजी की रथयात्रा की अद्भुत बातें जो आपको जाननी चाहिए. अगले पेज पर..
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