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बलराम और श्रीकृष्ण पौगण्ड-अवस्था यानी पांच वर्ष पूरे करने के बाद छठे वर्ष में प्रवेश कर चुके थे. नंदबाबा से जिद करके उन्होंने बछड़ों की जगह गाएं चराने की अनुमति ले ली थी. बलराम और श्रीकृष्ण के सखाओं में एक का नाम था- श्रीदामा.
एक दिन श्रीदामा ने बलराम और श्रीकृष्ण से कहा- बलरामजी. तुम तो असीम बाहुबल से भरे हो. कन्हैया भी दुष्टों को दंड देते रहते हो. हमारे वृंदावन के समीप ही एक दुष्ट का वास है. वह लोगों को सताता रहता है. उसे भी दंड दो.
बलराम के पूछने पर श्रीदामा ने बताया- पास में ताड़ का एक वन है जो सदा फलों से लदा रहता हैं. वहां धेनुक नामक दुष्ट दैत्य का वास है जो गधे के रूप में रहता है. वह फल खाने नहीं देता. कन्हैया! हमें उन फलों को खाने की बड़ी इच्छा है.
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