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इस शाप का लाभ यह हुआ कि भृंगी असहनीय पीड़ा में पड़कर समझ गए कि पितृशक्ति किसी भी सूरत में मातृशक्ति से परे नहीं है। माता और पिता मिलकर ही इस शरीर का निर्माण करते हैं। इसलिए दोनों ही पूज्य हैं।

इसके बाद भृंगी ने असह्य पीड़ा से तड़पते हुए जगदंबा की अभ्यर्थना की। माता तो माता होती है। उन्होंने तुरंत उनपर कृपा की और पीड़ा समाप्त कर दी। माता ने अपना शाप वापस लेने का उपक्रम शुरू किया लेकिन धन्य थे भक्त भृंगी भी। उन्होंने माता को शाप वापस लेने से रोका।

भृंगी ने कहा- माता मेरी पीड़ा दूर करके आपने मेरे उपर बड़ी कृपा की है। परंतु मुझे इसी स्वरुप में रहने दीजिए। मेरा यह स्वरूप संसार के लिए एक उदाहरण होगा। इस सृष्टि में फिर से कोई मेरी तरह भ्रम का शिकार होकर माता और पिता को एक दूसरे से अलग समझने की भूल न करेगा। मैंने इतना अपराध किया फिर भी आपने मेरे ऊपर अनुग्रह किया। अब मैं एक जीवंत उदाहरण बनकर सदैव आपके आसपास ही रहूंगा।

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भक्त की यह बात सुनकर महादेव और जगदंबा दोनों पुलकित हो गए। अर्द्धनारीश्वर स्वरुप धारण किए हुए मां जगदंबा और पिता महादेव ने तुरंत भृंगी को अपने गणों में प्रमुख स्थान दिया। भृंगी चलने-फिरने में समर्थ हो सकें इसलिए उन्हें तीसरा पैर भी दिया। तीसरे पैर से वह अपने भार को संभालकर शिव-पार्वती के साथ चलते हैं।

अर्धनारीश्वर भगवान ने कहा- हे भृंगी तुम सदा हमारे साथ रहोगे। तुम्हारी उपस्थिति इस जगत को संदेश होगी कि हर जीव में जितना अंश पुरूष है उतनी ही अंश है नारी। नारी और पुरुष में भेद करने वाले की गति तुम्हारे जैसे हो जाती है। पुरुष और स्त्री मिलकर संसार को आगे बढ़ाएं, दोनों बराबर अंश के योगी हैं यही सिद्ध करने को मैंने अर्धनारीश्वर रूप धरा है। स्त्री-पुरुष दोनों का अपना स्थान, अपना अस्तित्व है। इसे नकारने वाले को शिव-शिवा दोनों में से किसी की भी कृपा प्राप्त नहीं होती। वह जीव मृत्युलोक में सदा शिव-शिवा की कृपा के लिए तरसता ही विदा हो जाएगा।

भृंगी को वो पद प्राप्त हुआ, जिसे हासिल करने के लिए इंद्रादि बड़े-बड़े देवता भी लालायित रहते हैं। संसार को मैथुनी सृष्टि की व्यवस्था शिवजी ने दी है। इसके लिए उन्होंने सबसे पहले ब्रह्मा को अपना अर्धनारीश्वर स्वरूप दिखाया। उसे देखकर ही ब्रह्मा ने नारी की कल्पना की। नारी और पुरुष के संयोग से सृष्टि रचना की व्यवस्था दी। अर्थात नर-नारी मिलकर सूक्ष्म ब्रह्मा की तरह सृष्टिकर्ता हो जाते हैं।

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फिर शिव ने जगदंबा के साथ विवाह व्यवस्था दी। सर्वप्रथम विवाह शिव-जगदंबा का ही है। यह हमने आपको पीछे के पोस्ट में बताया था। फिर दांपत्य जीवन कैसा होना चाहिए इसका ज्ञान भी शिव-सती ने दिया। इसे स्थापित करने के लिए सती ने योगाग्नि में स्वयं को भस्म कर लिया था। यह पोस्ट भी पहले दी थी।

संकलनः पंडित अंशुमान आनंद

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