शिवजी के चित्रों में जगदंबा पार्वती बायीं तरफ या बाईं जंघा पर विराजमान दिखती हैं. शिव तो शाश्वत वैरागी हैं. फिर एक वैरागी हमेशा स्त्री के साथ क्यों? एक शिवभक्त तो इसे लेकर इतना व्याकुल हो गया कि वह यह सहन ही न कर पाया. शिवजी के साथ चलने वाले तीन प्रमुख शिवगण भृंगी की कथा सुनाता हूं जिनके तीन पांव हैं.

जहां नारायण के साथ लक्ष्मी उनकी चरणसेवा करती दिखती हैं वहीं पार्वती शिवजी की जंघा पर आसीन. शाश्वत वैरागी शिवजी को जगदंबा पार्वती के इतने निकट क्यों दिखाया जाता है? क्या यह चित्रकारों की कल्पनाशक्ति की भूल है या इसके पीछे कोई कारण भी है? यह प्रश्न बड़ा गूढ़ है. शिव-शिवा एकनिष्ठ हैं, एक में दोनों ही विलीन. इसलिए तो भगवान अर्धनारीश्वर रूप धरते करते हैं. इस सत्य को एक शिवभक्त स्वीकार नहीं पा रहा था. तब शिव ने उसे अर्धनारीश्वर रूप दिखाया. उसकी धृष्टता के लिए दंडित भी किया. उस प्रमुख शिवगण भृंगी की कथा को ध्यान से पढें फिर आपको शिव-शिवा के इस संबंध का थोड़ा आभास होगा.

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महादेव के गणों मे एक हैं भृंगी। एक महान शिवभक्त के रुप में भृंगी का नाम अमर है। कहते हैं जहां शिव होंगे वहां गणेश, नंदी, श्रृंगी, भृंगी, वीरभद्र का वास स्वयं ही होगा। शिव-शिवा के साथ उनके ये गण अवश्य चलते हैं। इनमें से सभी प्रमुख गणों के बारे में तो कहानियां प्रचलित हैं। जैसे दक्ष यज्ञध्वंस के लिए वीरभद्र उत्पन्न हुए। मां पार्वती ने श्रीगणेश को उत्पन्न किया। नंदी तो शिव के वाहन हैं जो धर्म के अवतार हैं। शिलाद मुनि के पुत्र के रूप में जन्म लेकर शिवजी के वाहन बने नंदी। आपने यह सब कथाएं खूब सुनी होंगी पर क्या प्रमुख शिवगण भृंगी की कथा सुनी है?

भृंगी की खास बात यह हैं कि उनके तीन पैर हैं। शिव विवाह के लिए चली बारात में उनका जिक्र मिलता हैं “बिनु पद होए कोई.. बहुपद बाहू” (यानी शिवगणों में कई बिना पैरों के थे और किसी के पास कई पैर थे) ये पद तुलसीदासजी ने भृंगी के लिए ही लिखा है।

भृंगी के तीन पैर कैसे हुए? इसके पीछे एक कथा है जो हमें बताती है कि उमा-शंकर के बीच का प्रेम कितना गहरा है। ये दोनों वस्तुत: एक ही हैं। दरअसल भृंगी की एक अनुचित जिद ही वजह से सदाशिव और जगदंबा को अर्द्धनारीश्वर रुप धारण करना पड़ा।

भृंगी महान शिवभक्त थे। सदाशिव के चरणों में उनकी अत्य़धिक प्रीति थी। उन्होंने स्वप्न में भी शिव के अतिरिक्त किसी का ध्यान नहीं किया था। यहां तक कि वह जगद्जननी मां पार्वती को भी सदाशिव से अलग मानते थे। “शिवस्य चरणम् केवलम्” के भाव में हमेशा रहते थे। उनकी बुद्धि यह स्वीकार ही नहीं करती थी कि शिव और पार्वती में कोई भेद नहीं है।

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एक बार सदाशिव के परम भक्त श्रृंगी ऋषि कैलाश पर अपने आराध्य की परिक्रमा करने पहुंचे। सदैव की तरह महादेव के बाईं जंघा पर आदिशक्ति जगदंबा विराजमान थीं। महादेव समाधि में थे और जगदंबा चैतन्य थीं। जगदंबा के नेत्र खुले थे।

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