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प्रसन्नचित्त रम्भा कहने लगी- सिद्ध महाकाल! मैं वन के निवासी उस शकट ब्रह्मचारी को जानती हूं जो कभी आपसे नगर के पास मिला था.

हे सिद्ध! देखने से, साथ यात्रा करने से, वार्तालाप से, इकट्ठे रहने से और उपकार करने से मनुष्यों मे परस्पर स्नेह उपजता है परन्तु मुझे तो उस ब्राह्मण के साथ ऐसा कुछ भी नहीं हुआ यह ईश्वरीय माया है कि केवल नाम सुनकर इतना स्नेह हो गया है.

सिद्ध से यह कहकर रम्भा इंद्र के पास गई. नृत्य का कार्यक्रम हो चुका था. रम्भा ने और इंद्र से ब्राह्मण के व्रत आदि करने तथा उसके उत्पन्न हुए प्रेम की बात बताई. इंद्र भी प्रसन्न हुए. रम्भा से पूछकर इंद्र ने उस ब्राह्मण के पास अपना दूत भेजा.

इंद्र के आदेशानुसार उस दूत ने ब्राह्मण को उत्तम वस्त्राभूषण प्रदान किए तथा अलंकृत कर दिव्य विमान में बैठाकर स्वर्ग तक ले गया. सत्कारपूर्वक स्वर्ग के दिव्य भोग उसे प्रदान किए गए.

ब्राह्मण चिरकाल तक स्वर्ग में दिव्य भोग भोगता रहा. युधिष्ठिर, मनुष्य का जन्म अति दुर्लभ मानना चाहिए और पुण्य कर्म करने चाहिए ताकि यह जन्म भी व्यर्थ न जाए साथ ही फिर से जन्म भी न लेना पड़े.

यदि मनुष्य दान, व्रत, उपवास रखते हुए कीर्ति के काम करता है वह कर्मों से मिले पुण्य से परलोक में सुख भोगता है. शकटव्रत ऐसा ही व्रत है जो दृढ़ व्रती पुरुष के लिए राजलक्ष्मी, वैकुण्ठलोक, आदि दुर्लभ पदार्थ भी जगत में सुलभ करा सकता है. जैसे उस ब्राह्मण ने सहज ही स्वर्ग भोगा.
(संदर्भ: भविष्यपुराण, उत्तरपर्व का छठा अध्याय)

संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्

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1 COMMENT

  1. sharda aue bhakti tatha gyan ko parksit karney wala aap key dwra dali gaey pege ki jitney bhi tarif kiya jay kam hai meri aur say karo shub kamna aap hamesa hamara marg darsan kartey rahe aur hum may bhakti bhao jagatey rahey danybad

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