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एक मैं ही भाग्यहीन हूं क्योंकि मेरा कोई स्वामी नहीं है. मुझे कोई अधिकार या संरक्षण देने वाला नहीं है. हे प्रभु अन्य मास मुझे हीन कहकर संबोधित करते हूं. मुझे इस पीड़ा से मुक्ति दिलाइए.
अधिक मास की प्रार्थना को सुनकर श्री हरि ने कहा- हे मलमास मेरे अंदर जितने भी सद्गुण हैं वह सभी मैं तुम्हें प्रदान कर रहा हूं. मैं तुम्हें अपना जगत प्रसिद्ध नाम पुरुषोत्तम भी प्रदान करता हूं. आज से मैं ही तुम्हरा स्वामी हूं.
इस मास में मेरा भजन-पूजन-कीर्तन व दान आदि कर्म करने वाले पृथ्वी लोक पर सभी सुखों को भोगेंगे और शरीर त्यागने के बाद उन्हें मेरे लोक की प्राप्ति होगी.
स्वयं वासुदेव द्वारा संरक्षण प्राप्त करने और उनका प्रिय नाम प्राप्त करने से अधिकमास धन्य हो गए. उन्होंने श्रीहरि की स्तुति की. प्रभु ने उन्हें उत्तम फल प्रदान किए.
तभी से मलमास का नाम पुरुषोत्तम मास हो गया और भगवान श्रीहरि की कृपा से ही इस मास में भगवान का कीर्तन, भजन, दान-पुण्य करने वाले मृत्यु के पश्चात श्री हरि धाम को प्राप्त होते हैं. अधिकमास में श्रीकृष्ण की भक्ति करनी चाहिए.
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