श्रीराम की सहायता से राजगद्दी पाकर सुग्रीव आमोद-प्रमोद में ऐसे डूबे कि वह भूल गए कि उन्होंने सीताजी को खोजने में श्रीराम की सहायता का वचन दिया है.

लक्ष्मणजी द्वारा चेतावनी देने के बाद सुग्रीव ने वानर वीरों की टोली सीताजी की खोज में भेजी.

सुग्रीव ने युवराज अंगद की अगुवाई में सीताजी का पता लगाने के लिए हनुमान, जामवंत, नल-नील की टोली को दक्षिण दिशा में भेजा था.

यह टोली चलते-चलते सागर तट तक आ गई. सुग्रीव द्वारा दिया समय समाप्त होने को था लेकिन लेकिन सीताजी का कोई अता-पता न मिला.

हारकर वानर वीरों ने सोचा इस तरह असफल होकर लौटने से अच्छा हैं वे यहीं प्राण त्याग दें. सारे वानरों ने अन्न-जल त्यागा और सागर तट पर बैठ गए.

पास की एक गुफा से एक वृद्ध गिद्धराज संपाति वानरों के प्राण त्यागने की प्रतीक्षा में बैठे देवों का आभार व्यक्त करते थे कि उन्होंने इतना आहार भेजा है.

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