नाग शिवजी के कंठाहार है. शिवपुराण में नागों के बारे में वर्णन है. नागपंचमी को नागों की पूजा से शिवजी प्रसन्न होते हैं. नागपंचमी नागों की विशेष पूजासे करें शिवजी को प्रसन्न.
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श्रावण मास के शुक्ल पक्ष की पंचमी तिथि को शिवजी के सेवकों नागों की पूजा का विशेष दिन हैं. इसे नागपंचमी के रूप में मनाया जाता है. नाग मंदिरों में और घर-घर में इस दिन नाग देवता की पूजा का विधान है. 14 जुलाई 2017 शुक्रवार को सावन के कृष्णपक्ष की नागपंचमी थी. शुक्लपक्ष की नागपंचमी 27 जुलाई 2017 को होगी. देश के बहुत से हिस्से में कृष्णपक्ष की नागपमंचमी ही मनाई जाती है. उत्तर भारत के बड़े क्षेत्रों में शुक्लपक्ष की नागपंचमी पर व्रत-पूजन आदि का विधान है.
मान्यता है नागपंचमी के दिन नागों की पूजा करने वाले को कभी सर्प भय नहीं होता. नागपंचमी पर नाग दर्शन का विधान कहा गया है किंतु नाग प्रतिमाओं की पूजा भी कर लें तो पर्याप्त है.
नागपंचमी पूजन विधिः
नागपंचमी पर सुबह नित्य कर्मों से निवृत्त हो स्वच्छ वस्त्र पहन लें. प्रथम पूजा तो गणेशजी की होती है. इसलिए गणपति का स्मरण किसी भी मंत्र से कर लें. गणपति के सरल आह्वान का मंत्र प्रभु शरणम् ऐप्पस में है. यदि नहीं कर पा रहे तो एक माला ऊँ गं गणपत्यै नमः की जप लें.
उसके बाद भगवान भोलेनाथ का ध्यान करें.
इसके बाद यदि नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा (सोने, चांदी या तांबे से निर्मित) है तो अन्यथा तस्वीर के सामने मंत्र बोलें-
अनन्तं वासुकिं शेषं पद्मानाभं च कम्बलम्।
शंखपाल धार्तराष्ट्रं तक्षकं कालियं तथा।।
एतानि नव नामानि नागानां च महात्मनाम्।
सायंकाले पठेन्नित्यं प्रात:काले विशेषत:।।
तस्मै विषभयं नास्ति सर्वत्र विजयी भवेत्।।
पूजा का संकल्प लें. नाग-नागिन के जोड़े की प्रतिमा का दूध से स्नान करवाएं. प्रतिमा नहीं है तो सिर्फ तस्वीर है तो एक कटोरे में इस भाव से दूध रखें कि आप नाग-नागिन का स्नान करा रहे हैं. दूध स्पर्श करा दें, तस्वीर से.
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इसके बाद शुद्ध जल से स्नान कराकर गंध, पुष्प, धूप, दीप से पूजन करें तथा सफेद मिठाई का भोग लगाएं। इसके बाद सभी स्थानों पर पाए जाने वाली
सर्प जाति को प्रसन्न करने के लिए निम्न प्रार्थना करें-
सर्वे नागा: प्रीयन्तां मे ये केचित् पृथिवीतले।।
ये च हेलिमरीचिस्था येन्तरे दिवि संस्थिता।
ये नदीषु महानागा ये सरस्वति गामिन:।
ये च वापी तडागेषु तेषु सर्वेषु वै नम:।।
नागपंचमी पूजा में सबसे प्रभावी नीचे लिखे मंत्र को बताया जाता है. यदि समय के अभाव में ऊपर बताई गई विधियों का पालन नहीं हो पा रहा, या पाठ नहीं हो पा रहा तो नीचे लिखे नागगायत्री मंत्र का कम से कम नौ बार जप करें.
नागपंचमी को नौ विशेष नागों की पूजा बताई जाती है. इसलिए कम से कम नौ बार या यथासंभव नाग गायत्री मंत्र का जप कर लेना चाहिए-
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नागगायत्री मंत्रः
ऊँ नागकुलाय विद्महे विषदन्ताय धीमहि तन्नो सर्प: प्रचोदयात्।
वैसे तो इतनी पूजा भी पर्याप्त है किंतु बहुत से लोगों के नाग कुलदेवता होते हैं. वे विधिवत पूजा के लिए मंदिरों में भी जाते हैं. उन्हें किसी नागमंदिर में या शिव मंदिर में सर्पसूक्त का पाठ भी कर लेना चाहिएः
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।।सर्पसूक्त।।
ब्रह्मलोकेषु ये सर्पा: शेषनाग पुरोगमा:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इन्द्रलोकेषु ये सर्पा: वासुकि प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
कद्रवेयाश्च ये सर्पा: मातृभक्ति परायणा।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इंद्रलोकेषु ये सर्पा: तक्षका प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सत्यलोकेषु ये सर्पा: वासुकिना च रक्षिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
मलये चैव ये सर्पा: कर्कोटक प्रमुखादय:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
पृथिव्यांचैव ये सर्पा: ये साकेत वासिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
सर्वग्रामेषु ये सर्पा: वसंतिषु संच्छिता।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
ग्रामे वा यदिवारण्ये ये सर्पा प्रचरन्ति च।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
समुद्रतीरे ये सर्पा ये सर्पा जलवासिन:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
रसातलेषु या सर्पा: अनन्तादि महाबला:।
नमोस्तुतेभ्य: सर्पेभ्य: सुप्रीता: मम सर्वदा।।
इसके बाद नागदेवता की आरती करें और प्रसाद वितरित कर दें. यह नागदेवता की विधिवत पूजा का विधान है. इससे नागदेवता प्रसन्न होते हैं और आपके संकट का समाधान करते हैं.
नागपंचमी को यदि व्रत नहीं कर पा रहे तो भी नागप्रतिमा या शिवप्रतिमा के समझ बैठकर नागपंचमी की कथा अवश्य पढ़ लेनी चाहिए. इससे नागकुल के दंश का भय कम होता है.
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