भगवान श्रीराम की लीला अपरंपार है. यज्ञ में श्रीराम ब्राह्मणों को दान दे रहे थे. किसी ने सीता जी को ही दान में मांग लिया. भगवान ने सीता जी क्यों दे दिया दान में? आनंद रामायण की कथा समाज के लिए आंखें खोलने वाली है.
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भगवान श्रीराम ने माता सीता को ही दान कर दिया था और यह दान मांगा किसने? पत्नी को दान में मांगने वाले थे स्वयं उनके कुलगुरू वशिष्ठ! वशिष्ठ जी जैसा ज्ञानी और श्रीराम जैसा मर्यादा पुरुषोत्तम ऐसा कैसे कर देगा! स्त्री को दान में कैसे दे देगा! कलयुग होता तो सोचा भी जा सकता था, त्रेता में ऐसा अनर्थ कैसै!
आपको हैरानी हुई न सुनकर. हैरानी होनी स्वाभाविक है पर ऐसा क्यों हुआ था यह जानेंगे तो हृदय वशिष्ठजी के लिए और श्रद्धा से भर आएगा. प्रभु श्रीराम के लिए प्रेम और बढ़ जाएगा. मैं हमेशा कहता हूं कि ईश्वर की लीला को सामान्य कथा समझकर पढ़ते-सुनते रहेंगे तो आप अपना समय व्यर्थ कर रहे हैं. फिर इससे अच्छा है कि सिनेमा देख लें, सीरियल देख ले. वहां मनोरंजन इससे ज्यादा है.
धर्मग्रंथों की कथाएं सिर्फ सुनने के लिए गुनने के लिए होती हैं. उनका चिंतन करके उसके पीछे का अर्थ समझना होता है तभी उपयोग है. वरना इंटरनेट पर मोबाइल का डेटा खर्चके आनंद के अनगिनत और तरीके हैं. इसलिए प्रभु शरणम् से जुड़े रहिए. हमारा उद्देश्य वह बताना नहीं है जो आप सुनते आए हैं. हमारी कोशिश रहती है उस रहस्य को सामने लाने की जिसके लिए कोई भी कथा ग्रंथों में जोड़ी गई होगी.
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आइए पहले कथा पढ़ते हैं फिर श्रीराम द्वारा सीता जी को दान में देने के पीछे के उस संदेश की भी बात करेंगे जिसे उन्होंने अपनी लीला और गुरु वशिष्ठ मुनि जरिये समाज तक पहुंचाया.
लंका विजय से लौट आने के बाद की बात है. भगवान श्रीराम ने इस बार बहुत विशाल अश्वमेध यज्ञ किया. इस यज्ञ की पूरी धरती पर चर्चा थी. खूब दान बांटा जा रहा था.
इससे उत्साहित होकर भगवान ने घोषणा कर दी कि यदि कोई मुझसे कौस्तुभ मणि, कामधेनु, अयोध्या का राज्य, पुष्पक विमान और यहां तक कि सीताजी को भी दान में मांगेगा तो मैं खुशी-खुशी दे दूंगा.
इस घोषणा का प्रचार दूर-दूर तक हुआ पर किसी में इतनी हिम्मत या सामर्थ्य कहां कि ऐसी वस्तुएं दान में मांगे. कोई सामने न आया.
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ठीक रामजन्म के दिन यज्ञ सकुशल संपन्न हो गया. देवताओं ने फूल बरसाये तो नगर निवासियों ऋषि मुनियों और भगवान राम का दर्शन सुख लिया.
अब भगवान श्रीराम द्वारा अपने गुरु को दान देने की बारी थी.
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