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यह गणेश उत्सव प्रभु शरणम् के संग. प्रभु शरणम् में श्रीगणेशजी की कथाओं और गणपति रहस्य की शृंखला शुरू हुई है जिसे आप पसंद भी कर रहे हैं. इन दस दिनों के विशेष गणेश उत्सव में हम ऐसी-ऐसी कथाएं और श्रीगणेशजी के रहस्य लेकर आएंगे जिनके पढ़कर आप आनंदित होंगे. शायद आप यह सब चीजें लंबे समय से खोज रहे थे.
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आपको गणेशजी की प्रतिमा स्थापना की सरलतम विधि और चतुर्थी की कथा से आज परिचित करा रहे हैं. गणेशजी की पूजा को लेकर लोग अक्सर एक दोष कर देते हैं वह है गणपति के अंगों की विशेष पूजा.
आप गणेशजी के मंत्र देखें तो उसमें उनके शरीर के समस्त अंगों की स्तुति है और उन अंगों से जुड़ी कथाएं हैं जो हम दस दिनों में आपको सुनाएंगे. इसलिए गणेशजी के अंगों की विशेष पूजा जरूर करनी चाहिए.
यह पूजा इतनी सरल है कि आपको खुद लगेगा कि क्यों नहीं करते थे अभी तक पूजा. अधूरी पूजा रखने का क्या लाभ. तो आइएं जानें विस्तृत विधि.
गणेशजी की पूजा सायंकाल में की जाती है. यदि आपने दिन में ही पूजा कर ली है तो भी संध्याकाल में गणपति के अंगों की आरती अवश्य कर लें. यह छोटा सा विधान बड़ा प्रभावशाली है. सुख-संपत्ति, संतान, आरोग्य, बल, बुद्धि और विद्यादायक है.
इस बार चतुर्थी वाले दिन काफी अच्छे संयोग बन रहे हैं. रविवार को ही चतुर्थी शाम 6 बजकर 54 मिनट से लग जायेगी जो कि 5 सितंबर को रात 9 बजकर 10 मिनट पर समाप्त होगी.
श्रीगणेश की पूजा और स्थापना सोमवार को सुबह से लेकर रात 9:10 के बीच में कर सकते हैं. वैसे पूजा का सबसे अच्छा वक्त सोमवार को दिन के 11 बजे से लेकर दोपहर के 1 बजकर 38 मिनट तक का है.
सबसे पहले स्वयं और स्थान का पवित्रीकरण कर लें. पवित्रीकरण का मंत्र सरल है-
ॐ अपवित्रः पवित्रो वा सर्वावस्थां गतोऽपि वा।
यः स्मरेत्पुंडरीकाक्षं स बाह्याभ्यंतरः शुचिः॥
इस मंत्र का उच्चारण करते हुए तीन बार जल स्वयं पर और आसन पर छिड़कें.
अब आप श्रीगणेशजी की विधिवत प्रतिमा स्थापना आरंभ कर सकते हैं.
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