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आपको अपने स्कूली जीवन की पहली परीक्षा याद है!
आपकी परीक्षा थी और पूरा परिवार दो दिनों से उत्साहित कम घबराया हुआ ज्यादा होगा. आपकी तो उस समय उम्र ही नहीं होगी जब परीक्षा की घबराहट को समझ सकें.
अपनी मां से पूछिएगा कि क्या-क्या हुआ था. उन्हें एक-एक अक्षर याद होंगे. अपने बोर्ड की पहली परीक्षा तो याद होगी. सारी तैयारियां पक्की थीं. आपको पता था कि कुछ रहा नहीं है पढ़ने को फिर भी एक घबराहट थी.कुछ इस तरह के विचार आए होंगे.
-न जाने ऐसा क्या पूछ दें मेरे से रह गया हो.
-जिस टॉपिक को सबसे कम पढ़ा है कहीं वही न पूछ दें.
-क्या पता जब लिखने लगूं तो हाथ कांपने लगें.
-सारे उत्तर पता हों पर कहीं दिमाग ही काम करना न बंद कर दें और लिख ही नहीं पाऊं….
इस तरह की न जाने कितनी आशंकाएं जिसमें से ज्यादातर बेवजह की. जब परीक्षा देकर निकल आए तो बहुत कुछ रिलैक्स. टेंशन एक बार फिर बढ़ी होगी जब रिजल्ट आने का दिन हो गया होगा.
फिर कुछ निराधार आशंकाएं आई होंगी-
-क्या पता मेरी कॉपी जिस टीचर के हाथ गई हो वह खडूस हो. नंबर देने में कंजूसी करता हो जबकि दोस्त की कॉपी रहमदिल के पास गई हो. सब तो यही कहेंगे कि उसकी मेहनत ज्यादा थी. वह ज्यादा होशियार है पर सच्चाई किसे पता!
– कहीं ऐसा न हो जिसके पास मेरी कॉपी हो उसका घर में झगड़ा हुआ हो. उसका मूड खराब हो और सारा गुस्सा मेरी कॉपी पर निकाल दे. मामूली गलतियां जिन्हें इग्नोर किया जा सकता है उसके भी नंबर काट ले.
-क्या पता जब मेरी ही कॉपी टीचर ने ली हो ठीक उसी समय वहां कुछ समस्या आ जाए, जैसे बिजली चली जाए या कुछ औऱ प्रॉब्लम हो जाए. टीचर मुझे ही मनहूस समझ लें और नंबर काट लें…. आदि, आदि..
बहुत सालों बाद जब आप फिर से उन बातों को सोचेंगे तो हंसी आएगी कि आप क्या-क्या सोचते थे. यदि ऐसा सचमुच महसूस होता है तभी ये पोस्ट आगे पढ़िएगा क्योंकि तभी आप इसे समझ पाएंगे.
जो कहानी सुनाने जा रहा हूं उसका लाभ ले पाएंगे, उसे किसी और को सुनाकर उसे बिखरने से बचा पाएंगे. यदि यह सब महसूस नहीं हुआ है तो फिर जो कहानी मैं आपको सुनाने जा रहा हूं वह आपके दिमाग में सेट नहीं हो पाएगी.
विचारकर लीजिए तभी अगले पन्ने पर जाने का बटन दबाइए.
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