भैरव का अर्थ भयानक और पोषक दोनों ही है. काल भी उनसे भय खाता है इसलिए उन्हें कालभैरव भी कहते हैं. वह संहार के देव शिवजी के संगी है.
भैरवजी का वाहन कुत्ता यानी श्वान है. भैरवजी शिवजी के उग्र सेवक हैं. माता के साथ भी भैरव होते हैं. यानी शिवजी और जगदंबा दोनों के कृपापात्र हैं, दोनों की शक्तियों से सुसज्जित हैं.
भोलेनाथ ने अपनी नगरी काशी की रक्षा का दायित्व भैरवजी के हाथ दे रखा है. उन्हें काशी का कोतवाल भी कहते हैं. स्थानीय व्यवस्था बनाए रखने, दुष्टों को दंड देने और संतों की सुरक्षा करने का दायित्व जैसे कोतवाल का होता है, वैसा ही दायित्व भैरवजी काशी में निभाते हैं.
भैरवजी की उपासना बड़ी उग्र उपासना है, तुरंत फलित होने वाली. जेल जाने का भय हो, तंत्र प्रयोग के कारण यदि अनिष्ट की हो आशंका हो, कोई शत्रु बहुत परेशान कर रहा हो तो ऐसे में भैरवजी की साधना से तत्काल राहत मिलती है.
आइए, काशी के कोतवाल श्रीभैरवजी की कथा सुनते हैं.
एक बार देवताओं ने ब्रह्मा और विष्णुजी से बारी-बारी से पूछा कि जगत में सबसे श्रेष्ठ कौन है? तो दोनों देवताओं ने कई तर्क देकर स्वयं को श्रेष्ठ बताने का स्वाभाविक आचरण किया.
जब कोई निर्णय नहीं हो पा रहा था तो देवताओं ने वेदों के सामने अपनी समस्या रखी.
वेदों ने कहा- सर्वश्रेष्ठ वही हो सकता है जिसके भीतर चराचर जगत, भूत, भविष्य और वर्तमान समाया हुआ हो. जो अनादि, अनंत और अविनाशी हो. यह सारे गुण तो भगवान रूद्र में ही समाहित हैं. इसलिए देवतागण आप लोगो शिव को ही सर्वश्रेष्ठ समझें.
वेदशास्त्रों से शिव की इतनी प्रशंसा सुनकर ब्रह्मा के पांचवें मुख ने शिवनिंदा करनी शुरू कर दी.
इससे वेद काफी दुखी हुए. तभी रूद्र एक दिव्य ज्योतिपुंज के रूप में वहां प्रकट हो गए.
ब्रह्मा ने कहा- हे रूद्र, तुम मेरे ही सिर से पैदा हुए हो और अधिक रुदन करने के कारण मैंने ही तुम्हारा नाम ‘रूद्र’ रखा है. अतः तुम मेरी सेवा में आ जाओ.
ब्रह्मा के इस अहंकार भरे आचरण पर शिव को भयानक क्रोध आया. क्रोध में भरकर उन्होंने भैरव को उत्पन्न किया. महादेव ने भैरव को आदेश दिया कि उनके मन पर पड़ा अज्ञान का भ्रमजाल मिटाओ.
दिव्य शक्तियों से संपन्न भैरव ने उसे शिव का क्रोधपूर्ण आदेश समझ लिया और अपने बाएं हाथ की सबसे छोटी अंगुली के नाख़ून से ब्रह्मा के उसी पांचवें मुख पर प्रहार किया जिसने शिवनिंदा की थी.
ब्रह्मा का पांचवा सर कटकर वहीं गिर पड़ा. भैरव ने आवेश में भरकर ब्रह्महत्या का पाप कर दिया था. तत्काल उन्हें ब्रह्महत्या दोष ने आ घेरा और उन्हें पीड़ित करने लगी.
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