October 8, 2025

जहां सेवा करने का अवसर न मिले वह कैसा स्वर्ग? ऐसे परोपकारी थे हमारे ऋषि-महर्षि. महर्षि मुद्गल की कथा

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कुरुक्षेत्र तीर्थ में रहने वाले महर्षि मुद्गल दो तरीके से अपने लिए भोजन जुटाते थे एक तो भिक्षा मांगकर, दूसरे किसानों द्वारा काटी जा चुकी फसल से खेत में गिरे दाने चुनकर.

वे पखवारे भर में जो भी अन्न इकट्ठा करते अमावस्या या पूर्णिमा को दान कर देते. खुद पूरा परिवर तीन दिन में एक बार खाता पर इतना होने पर भी अतिथि उनके दरवाजे से कभी भूखा न जाता.

महर्षि मुद्गल के अन्नदान की महिमा दूर-दूर तक फैली तो उसे सुनकर क्रोधी स्वभाव के लिए विख्यात दुर्वासा ने उनकी परीक्षा लेने की सोची. दुर्वासा पागलों जैसा भेष बनाए मुद्गलजी के आश्रम में पहुंचे और भोजन मांगने लगे.

मुद्गल ने अपने पास रखा सारा अन्न दुर्वासा के सामने रख दिया. दुर्वासा ने सब खा लिया और वहां से चले गए. तीन तीन दिन पर एक बार खाने वाले मुद्गल परिवार सहित भूखे रह गए पर अपनी तकलीफ दुर्वासा को महसूस न होने दी.
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