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महाराज जनक अपने फैसले बहुत सूझबूझ से करते थे. एक बार उनके राज्य के एक ब्राह्मण को दोषी पाया गया. महाराज जनक ने कहा- तुम्हारी सज़ा यही है कि तत्काल मेरे राज्य से निकल जाओ.
ब्राह्मण तपस्वी और ज्ञानी लग रहा था. उसने जनक से आदर के साथ पूछा- महाराज, कृपा करके आप यह बता दें कि आपका राज्य कहां तक है, ताकि मैं आपकी आज्ञा का पूरी तरह से पालन कर सकूं. मैं आपके अधिकार वाले राज्य से बाहर निकल सकूं.
कुछ भी कहने से पहले जनक बहुत विचारते थे. इसलिये यह सवाल सुनकर राजा जनक सोचने लगे कि उनका राज्य हर दिशा में कहां, कहां तक है. एकबारगी लगा पूरी धरती पर उनका ही तो अधिकार है.
फिर लगा नहीं, यह पूरी तरह सच नहीं है. मैं अधिकतर मिथिला में ही बना रहता हूं इसलिये सही मायने में केवल मिथिला नगरी पर ही मेरा अधिकार है. नहीं, सारी नगरी पर भी नहीं, महज प्रजा पर ही.
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