तुलसीदासजी श्रीसीताराम जी के कुल की वंदना, उनके नगर की वंदना और सहायकों की वंदना के बाद अपने आराध्य प्रभु श्रीराम नाम की महिमा का बखान आरंभ करते हैं. इस वंदना को कई खंडोंं में प्रस्तुत करूंगा.

श्री नाम वंदना और नाम महिमा

चौपाई :
बंदउँ नाम राम रघुबर को। हेतु कृसानु भानु हिमकर को॥
बिधि हरि हरमय बेद प्रान सो। अगुन अनूपम गुन निधान सो॥1॥

भावार्थ:-मैं श्री रघुनाथजी के नाम ‘राम’ की वंदना करता हूं, जो कृशानु (अग्नि), भानु (सूर्य) और हिमकर (चन्द्रमा) का हेतु अर्थात्‌ ‘र’ ‘आ’ और ‘म’ रूप से बीज हैं. वह ‘राम’ नाम ब्रह्मा, विष्णु और शिवरूप है. वह वेदों का प्राण है, निर्गुण, उपमा रहित और गुणों का भंडार है.

महामंत्र जोइ जपत महेसू। कासीं मुकुति हेतु उपदेसू॥
महिमा जासु जान गनराऊ। प्रथम पूजिअत नाम प्रभाऊ॥2॥

भावार्थ:- जिस मंत्र को स्वयं महेश्वर जपते हों वह महामंत्र काशी में मुक्ति का कारण है तथा जिसकी महिमा को गणेशजी जानते हैं. इस ‘राम’ नाम के प्रभाव से ही वह सर्वप्रथम पूजनीय माने जाते हैं.

जान आदिकबि नाम प्रतापू। भयउ सुद्ध करि उलटा जापू॥
सहस नाम सम सुनि सिव बानी। जपि जेईं पिय संग भवानी॥3॥

भावार्थ:- आदिकवि श्री वाल्मीकिजी रामनाम के प्रताप को जानते हैं. वाल्मिकी जी उल्टा नाम जप (‘मरा’,’मरा’) जपकर पवित्र हो गए. शिवजी से यह जानकर कि एक राम-नाम सहस्र नामों के समान प्रभावी है, पार्वतीजी सदा अपने महादेव के साथ राम-नाम का जप करती रहती हैं.

हरषे हेतु हेरि हर ही को। किय भूषन तिय भूषन ती को॥
नाम प्रभाउ जान सिव नीको। कालकूट फलु दीन्ह अमी को॥4॥

भावार्थ:-नाम के प्रति पार्वतीजी के हृदय की ऐसी प्रीति देखकर शिवजी हर्षित हो गए और उन्होंने स्त्रियों में भूषण रूप, पतिव्रताओं में शिरोमणि पार्वतीजी को अपना भूषण बना लिया. अर्थात्‌ उन्हें अपने अंग में धारण करके अर्धांगिनी बना लिया.

राम नाम के प्रभाव को श्री शिवजी भलीभांति जानते हैं. इस नाम का प्रभाव ही था कि कालकूट जैसे जहर से भी उनको अमृत का फल मिला.

दोहाः
बरषा रितु रघुपति भगति तुलसी सालि सुदास।
राम नाम बर बरन जुग सावन भादव मास॥19॥

भावार्थ:- श्री रघुनाथजी की भक्ति वर्षा ऋतु के समान है. तुलसीदासजी कहते हैं कि उत्तम सेवकगण धान हैं और ‘राम’ नाम के दो सुंदर अक्षर सावन-भादो के दो महीने हैं.

संकलनः राजन प्रकाश

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