महादेव शिव शंभु एप्पस में हम शिवजी के मंदिरों पर एक शृखला आरंभ कर रहे हैं. यदि आपकी जानकारी में भी कोई ऐसा शिवमंदिर है जिसकी कथा कुछ अलग-अनूठी है.

जैसे हिमाचल में आधे शिवलिंग वाला मंदिर है, या कुल्लू में शिवमंदिर है जिस पर हर 12 साल पर बिजली गिरती है. इस तरह की सैकड़ों कथाएं आपके आस-पास बिखरी हैं. हम इनसे पूरी दुनिया का परिचय कराना चाहते हैं.

आप हमें 9871507036 पर WhatsApp में ऐसी जानकारियां लिखके बताएं. हम वह कथाएं महादेव शिव शंभू एप्प में प्रकाशित करेंगे. आप Mahadev Shiv Shambhu एप्प तत्काल डाउलनोड कर लें. अभी पढ़िए एक प्रेरक कथाः

किसी नगर में एक निर्धन ब्राम्हण अपनी पत्नी के साथ रहता था. उस नगर का राजा बहुत ही दयालु प्रजापालक और ब्राम्हणों को सम्मान देने वाला था. फिर भी उस निर्धन ब्राम्हण ने कभी राजा के पास जाकर किसी प्रकार का दान नहीं मांगा था.

निर्धनता से दुखी होकर एक दिन ब्राम्हण की पत्नी ने अपने पति से कहा कि अब उन्हें राजा के पास जाकर कुछ दान मांगना चाहिए जिससे परिवार चल सके. ब्राम्हण ने कहा देवी- उस राजा में ऐसी ताकत नहीं है जो मुझे दान दे सके.

परंतु पत्नी ने उस ब्राम्हण की नहीं सुनी और जिद्द करने लगी. आखिरकार ब्राम्हण को राजा के पास जाना ही पड़ा. राजा ने उनका स्वागत किया और सम्मान से बिठाकर आने का प्रयोजन पूछा.

ब्राम्हण ने वहां आने का अपना प्रयोजन बताया तो राजा ने गर्व से कहा- आप राज्य की किसी भी वस्तु पर हाथ रख दें वह आपकी हो जाएगी. इस पर ब्राम्हण मुस्कुराने लगा.

बड़े विनम्र भाव से ब्राह्मण बोला- मुझे आपके धन दौलत की अभिलाषा नहीं. मुझे तो बस चार पैसे ही दे दीजिए जो आपने परिश्रम से कमाए हों. राजा सोच में पड़ गया. उसने ब्राम्हण से इस दान के लिए एक दिन का समय मांगा.

रात में भेष बदलकर राजा दूसरे नगर को चल पड़ा. वह एक लोहार के घर पहुंचा और उससे काम मांगने लगा. लोहार ने उसे उसे काम पर रख लिया. एक रात के काम के बदले 10 पैसे देने की बात तय हुई.

राजा रात भर लोहार के यहां लोहा पीटने का काम करता रहा. उसकी सुकुमार काया पूरी तरह अस्त व्यस्त हो गयी. इतनी मेहनत से कमाए दस पैसे लेकर वह अपने राज्य को चला.

दूसरे दिन राजा ने नियत समय पर ब्राम्हण को दस पैसे दिए लेकिन ब्राम्हण ने उसमें से सिर्फ चार पैसे लिए और वापस घर आ गया. ब्राम्हणी को जब मालूम पड़ा कि उनके पति ने क्या दान मांगा है तो वह नाराज हुई.

क्रोध में भरकर उसने वे चार पैसे अपने आंगन में ही फेंक दिए. बात आई गई हो गई लेकिन कुछ दिन पश्चात उस आँगन में चार पौधे उग आये जिनमें फूलों की जगह मोती लगे थे. उन पौधों की बदौलत ब्राम्हण अब बहुत धनवान हो गया.

ब्राम्हणी तो द्वार पर आने वाले गरीबों को अब मोती का दान करने लगी. यह बात राजा तक पहुंची. एक दिन राजा वहाँ आ धमका और ब्राम्हण से इसका रहस्य पूछने लगा लेकिन ब्राम्हण भी इस रहस्य से अनभिज्ञ था.

राजा ने उस जगह की खुदाई करवानी शुरू कर दी. कई महीने खुदाई के बाद भी जब उन पौधों का जड़ नहीं मिला तब राजा उस ब्राम्हण के आगे नतमस्तक हो गया और विनयपूर्वक उनसे इस रहस्य का कारण पूछने लगा.

अचानक राजा ने उस ब्राम्हण की जगह स्वयं श्रीनारायण भगवान एवं ब्राम्हणी की जगह स्वयं माता महा लक्ष्मी को खड़ा पाया और देखा कि उस पौधे के जड़ उनकी नाभि से निकल रहे हैं.

उसके कानों में शांत दिव्य वाणी में कोई अदृश्य शक्ति कह रही थी- यह तुम्हारी मेहनत के चार पैसे के दान से उगे वृक्ष हैं. एक उत्तम व्यक्ति को दान के लिए तुमने जितना पसीना बहाया था उसके मोल के मोती वृक्ष से फूट रहे हैं.

राजा की तंद्रा टूटी. उसे पुनः वे सामान्य ब्राह्मण दिखने लगे. राजा ने उनके चरणों में प्रणाम किया. अपना राजपाट पुत्र के हवाले कर वैराग्य धारण कर वन की ओर चल दिया.

दान मांगने वाला अक्षय संपत्ति के लालच से मुक्त हो, बस अपनी जरूरत का दान स्वीकार करे, दानदाता ऐसे पुण्यात्मा याचक को परिश्रम से अर्जित सात्विक धन दान करे, तो वह स्थान बैकुंठ जैसा पवित्र हो जाता है. स्वयं श्रीहरि और लक्ष्मी वहां वास करने लगते हैं.

संकलनः विजय सोनी
संपादनः राजन प्रकाश

यह कथा विजय सोनीजी ने छत्तीसगढ़ के राजनांदगांव से भेजी. विजयजी नौकरीपेशा व्यक्ति हैं और धर्मकार्यों में गहरी आस्था रखते हैं. आपके पास भी कोई प्रेरक या धार्मिक कथा है तो भेजें.

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