एक बार राजा अजातशत्रु एक साथ कई मुसीबतों से घिर गये! उन्हें समझ में नहीं आ रहा था कि अचानक आई इन आपदाओं को कैसे दूर किया जाये! वे दिन-रात इसी चिंता में डूबे रहते.

तभी एक दिन उनकी मुलाकात एक वाम-मार्गी तांत्रिक से हुई. तांत्रिक ने उन्हें चिंतित देखा तो कारण पूछा. अजातशत्रु ने उस तांत्रिक को अपनी आपदाओं के बारे में विस्तार से बताया.

तांत्रिक ने राजा से कहा कि इस संकट से मुक्ति का एक ही रास्ता है. राजा को पशुबलि देने होगी. यदि पशुबल से सारे संकटों का समाधान होता है तो फिर क्या समस्या! अजातशत्रु तुरंत तैयार हो गए.

तांत्रिक द्वारा बताए दिशा-निर्देशों का पालन करते हुए बलि देने की तैयारियां हुईं. एक विशेष अनुष्ठान का आयोजन किया गया. बलि के लिए एक भैंसे को मैदान में बांधकर खड़ा कर दिया गया.

वधिक हाथ में तलवार थामे संकेत की प्रतीक्षा कर ही रहा था कि तभी संयोगवश महात्मा बुद्ध वहां से गुजरे. उन्होंने मूक पशु को मृत्यु की प्रतीक्षा करते देखा तो उनका हृदय करुणा से भर गया.

वह राजा अजातशत्रु के पास गए और उनको एक तिनका देते हुए कहा- राजन् इस तिनके को तोड़कर दिखाइए. महात्मा बुद्ध के ऐसा कहते ही राजा ने तिनका लिया और दो टुकड़े कर दिये.

तिनके के टुकड़े होने पर महात्मा बुद्ध राजा से बोले- मुझसे बड़ी भूल हो गई. यह तिनका तो काम का था. गलती से मैंने इसे तोड़ने को दे दिया. जबकि मुझे दूसरा तिनका देना चाहिए थे.

एक काम करें. आप तो राजा हैं. कुछ भी कर सकते हैं. आप इस टूटे दिनके को फिर से जोड़ दीजिए ताकि मेरी भूल सुधार हो सके. मैं तब तक वह तिनका निकलता हूं जिसे तोड़ना था.

महात्मा बुद्ध झोले में से कुछ खोजने का स्वांग करने लगे. बुद्ध का यह आदेश सुनकर अजातशत्रु हैरान थे. वह बोले- भगवन! टूटे तिनके कैसे जोड़े जा सकते हैं?

अजातशत्रु का जवाब सुनकर बुद्ध ने कहा- जिस प्रकार आप तिनका तोड़ तो सकते हैं जोड़ नहीं सकते उसी प्रकार निरीह प्राणी का जीवन लेने के बाद आप उसे जीवित नहीं कर सकते.

यदि कल को आपको पता चले कि आपदा की वजह यह निरीह प्राणी था ही नहीं तो क्या उसे जीवित कर पाएंगे. निरीहों की हत्या से आपदायें कम नहीं होतीं, बढ़ती ही हैं!

आप की तरह इस पशु को भी तो जीने का अधिकार है. यदि इस हत्या से भी समस्या हल न हुई तो! समस्याएं कम करने के लिए अपनी बुद्धि और साहस का प्रयोग कीजिए. निरीह का वध मत कीजिए.

महात्मा बुद्ध की बात सुनकर राजा अजातशत्रु लज्जित हो गए. उन्होंने उसी समय पशु-बलि बंद करने का आदेश जारी कर दिया.

बात छोटी सी है लेकिन इसके अर्थ गहरे हैं. अपनी परेशानी हमें हर कदम पर रास्ता भी दिखा रही होती है लेकिन तभी चिंता हमारे अंदर प्रवेश करती है और उस राह की ओर जाने ही नहीं देती.

फिर सहारा परामर्श का है. हम किसी से परामर्श लेते हैं. जो जिस प्रवृति का होगा वैसा ही परामर्श देगा. कुटिल छल-कपट से भरा परामर्श, सज्जन सरल परामर्श. तय करिए कि मुसीबत में पड़ेंगे तो कैसे परामर्श की आवश्यकता होगी. उसी के अनुरूप मित्रता करें.

संकलनः अजय सैनी
संपादनः राजन प्रकाश

यह प्रेरक कथा उत्तर प्रदेश के मुरादाबाद से अजय सैनी ने भेजी. अजयजी इंजीनियरिंग के छात्र हैं. धार्मिक-आध्यात्मिक रूप से सक्रिय रहते हैं. इनकी भेजी कई कथाएं प्रभु शरणम् में प्रकाशित हो चुकी है.

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