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पृथ्वी ने एक बार देवसभा में प्रार्थना की- सारे कष्ट सहकर मानवों को भोजन व आश्रय देती हूं पर मुझपर जब संकट आता है तो अकेली पड़ जाती हूं. स्त्री स्वामी के बिना असहाय है.

मेरी कोई संतान भी नहीं है. मैं बांझ नहीं कहलाना चाहती. अतः श्रीहरि मुझसे विवाह करें. मैं उनके अंश को जन्म देना चाहती हूं. प्रभु बोले- हरिरूप में यह संभव नहीं. परंतु उनका एक अवतार पृथ्वी की इच्छा पूरी करेगा.

हिरण्यकश्यपु के भाई हिरण्याक्ष ने देखा कि पृथ्वीवासियों के यज्ञ-हवन से देवों को शक्ति मिलती है तो उसने देवों को निर्बल करने के लिए पृथ्वी का हरण कर रसातल में छिपा दिया. पृथ्वी ने श्रीहरि से रक्षा की गुहार लगाई.

वाराह भगवान ने हिरण्याक्ष का वधकर पृथ्वी को निकालकर सागर पर स्थापित कर दिया. बंधन से मुक्ति पाकर देवी पृथ्वी सकाम रूप में वराहरूप धारी श्रीहरि की वंदना करने लगीं.
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