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पार्वतीजी के पुकारने पर महादेव ने हुंकार भरी. अंधक को भय हुआ कि वह अकेला है, कहीं शिवगण घेरकर उसपर आक्रमण न करें इसलिए वह फिर से युद्धभूमि मंदार क्षेत्र में लौट गया.
अंधक लौटकर आया तो उसने देखा कि शिवगणों और देवों की सेना ने मिलकर असुर सेना का भारी विनाश कर दिया है. शुक्राचार्य मंदार पर आए और अंधक को शिवजी से क्षमा मांगकर युद्ध समाप्त करने की सलाह दी.
लेकिन अंधक तैयार नहीं हुआ. उसने इंद्र पर आक्रमण किया. इंद्र की रक्षा के लिए नंदी पर सवार होकर महादेव आए और उन्होंने अंधक पर अपने त्रिशूल से प्रहार किया. त्रिशूल उसके सीने में धंस गया. छटपटाते अंधक ने शिव के सिर पर गदा से प्रहार किया.
महादेव के मस्तक रक्त की धारा फूटी और उससे कालराज, कामराज, चक्रमाला, सोमराज, शोभराज, स्वच्छराज, ललितराज और विघ्नराज नामक भैरव पैदा हुआ.
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