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आचार्य द्रोण से पांडव और कौरव दोनों ही शस्त्र और शास्त्रों का ज्ञान प्राप्त कर रहे थे. अर्जुन को सर्वश्रेष्ठ धनुर्धर बनने की बड़ी लालसा थी. द्रोणाचार्य को परशुराम ने शब्दबेधी बाण चलाने की कला सिखाई थी.

शब्दबेधी बाण को आंख पर पट्टी बांधकर या बिना लक्ष्य को देखे सिर्फ उसकी ध्वनि सुनकर साधा जा सकता है. अर्जुन गुरुदेव स रोज शब्दबेधी बाण चलाना सिखाने का हठ करते, और द्रोण यह कहकर टालते कि अभी तुम्हारी तैयारी नहीं है.

अर्जुन का हठ बढ़ता जाता था. हारकर द्रोण ने अर्जुन को शब्दबेधी बाण सिखाने का तय किया. उससे पहले उन्होंने अर्जुन की परीक्षा ली. अर्जुन जब रात्रि भोजन कर रहे थे तो गुरू ने दीपक बुझा दिए.

अर्जुन ने अंधेरे में भी बिना एक दाना जमीन पर गिराए भोजन किया. भोजन के बाद द्रोण ने अर्जुन से पूछा- तुम्हें भोजन में परेशानी तो नहीं हुई?

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