ram bhakt hanuman
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लक्ष्मणजी को मेघनाद ने शक्ति मारी और वह मूर्च्छित होकर पड़े थे. सुषेण वैद्य ने संजीवनी लाने को कहा तो हनुमानजी संजीवनी की खोज में उड़े. बूटी को पहचान नहीं पा रहे थे इसलिए पूरा पर्वत ही उखाड़ा और लेकर चल पड़े.

रास्ते में वह कौशलपुरी के आकाश से होकर गुजरे. श्रीराम की चरण पादुका को राजा बनाकर सत्ता चला रहे भरत जी ने उन्हें देखा और शत्रु समझकर बाण मारकर धरती पर गिरा दिया.

भरतजी को पता चला कि यह तो रामकाज के लिए चले थे तो उन्होंने पवनसुत को पवन से भी तेज वेग से श्रीराम के पास लंका में पहुंचा दिया. लक्ष्मणजी के स्वस्थ होने के बाद हनुमानजी श्रीराम को अपने मन की कई बातें सुनाने लगे.

हनुमानजी श्रीराम से बोले- आपने संजीवनी लाने का दायित्व सौंपकर सबसे बड़ा उपकार किया. आपने लक्ष्मणजी की मूर्च्छा मिटाने के लिए यह कार्य नहीं किया क्योंकि आपके आदेश से संजीवनी स्वयं प्रकट हो सकते थे. आपने तो यह मुझे मेरी मूर्च्छा दूर करने के लिए किया.

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