लेटेस्ट कथाओं के लिए प्रभु शरणम् मोबाइल ऐप्प डाउनलोड करें।
Android मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
iOS मोबाइल ऐप्प के लिए क्लिक करें
नारदजी को नारायण भक्ति का रह-रहकर मान हो जाता था. इसी गुमान में वह जाने-अनजाने दूसरों का अपमान भी कर देते थे.
श्रीविष्णु को नारदजी बड़े प्रिय थे लेकिन गुमान से साधु की साधुता खत्म हो जाती है. इसे श्रीहरि चिंतित थे. एक दिन श्रीहरि नारदजी को साथ लेकर कहीं घूमने निकले.
एक गांव के पास श्रीहरि ने कहा- नारद मैं तो थक गया, प्यास लगी है. पानी का प्रबंध करिए. नारद, भगवान के लिए पानी खोजने निकले तो प्रभु ने माया फैलाई.
थोड़ी दूर पर नारद को एक कुआं दिखाई पड़ा जहां कुछ औरतें पानी भर रही थीं. एक कन्या को देखकर नारद ऐसे मोहित हुए कि सुध ही न रही, किस काम से आए हैं.
कन्या ने लपककर घड़ा भरा और अपने घर की ओर भागी. नारद ने भी उसके पीछे दौड़ लगा दी. कन्या के द्वार पर नारद ने नारायण नाम की आवाज लगाई.
घर का मालिक नारायण नाम सुनकर बाहर आया और नारदजी को तुरंत पहचान गया. उसने नारदजी को घर में बुलाया और सत्कार किया.
शेष अगले पेज पर. नीचे पेज नंबर पर क्लिक करें.