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राजा जनक ने स्थूल शरीर का त्याग किया तो उनकी पुण्यआत्मा का स्वागत करने और उसे स्वर्गलोक तक ले जाने के लिए धर्मराज ने एक विशेष विमान विमान भेजा.

स्वर्ग में प्रवेश करने से पहले वह विमान उन्हें नरकलोक की ओर ले चला. विमान पर सवार राजा जनक नरकपुरी से होकर गुजर हे थे तो उन्होंने देखा कि देवदूत अनेकों पापात्माओं को तरह-तरह से प्रताड़ित कर रहे हैं.

जनक क्षणभर के लिए ठिठके. जनक को छूकर जाने वाली हवा जब उन पापात्माओं तक पहुंचती थी तो उन्हें पीड़ा से राहत मिलती थी. जनक की उपस्थिति से राहत महसूस करते नरकवासी उनसे वहीं ठहर जाने की विनती करने लगे.

जनक धर्मसंकट में थे. एक तरफ तो उन्हें स्वर्गलोग की ओर आने के लिए धर्मराज का आदेश मिश्रित निमंत्रण था दूसरी और पापात्माओं की नरक में ठहरने की करूणाभरी याचना.

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