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महाभारत युद्ध समाप्त होने के बाद युधिष्ठिर को रक्तपात की पीड़ा सताने लगी. उनका मन विचलित हो गया. महर्षि वेद व्यास उनसे मिलने आए. उन्होंने कहा- आप परब्रह्म को प्राप्त करने का प्रयास करो तो मन को शांति मिलेगी.
युधिष्ठिर ने इसका मार्ग पूछा तो व्यासजी बोले- परब्रह्म वानप्रस्थ पर नहीं ब्लकि गृहस्थ आश्रम पर टिका हुआ है. तुम शास्त्र अनुसार धर्म का पालन करो. मैं तुम्हें दो ऋषि भाइयों शंख और लिखित की कथा सुनाता हूं.
शंख और लिखित नाम दो ऋषिकुमार थे. दोनों धर्मशास्त्र के ज्ञाता थे. अध्ययन समाप्त होने के दोनों ने विवाह किया और अपने-अपने आश्रम बनाकर अलग-अलग कर रहने लगे.
एक बार लिखित अपने बड़े भाई शंख के आश्रम पर मिलने गए. आश्रम में उस समय कोई नहीं था. लिखित को भूख लगी थी. इसलिए उन्होंने बड़े भाई के बाग से फल तोडा और खाने लगे.
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