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पृध्वी को भय हुआ कि नारायण द्वारा किए उथल-पुथल से कहीं उसका अद्भुत वैभव और उसकी संपदा हमेशा-हमेशा के लिए नष्ट न हो जाए.
श्रीहरि को पृथ्वी की चिंता भी उचित लगी क्योंकि हयग्रीव साधारण दैत्य तो था ही नहीं. उसके साथ युद्ध कितना लंबा चले यह कहना मुश्किल था और तब तक पृथ्वी की संपदा की रक्षा का दायित्व भगवान किसे देते.
भगवान को दो कार्यों की राह निकालनी थी. पहला तो वेदों का पता लगाकर उन्हें हयग्रीव के बंधन से मुक्त कराकर उद्धार करना और दूसरा पृथ्वी की दुर्लभ संपदा की रक्षा करना.
भगवान श्रीविष्णु ने इसके लिए मत्स्य का रूप धारण किया. हयग्रीव के साथ युद्ध की अवधि में पृथ्वी के वैभव की रक्षा करने वाले एक पराक्रमी और उदार जीव की भी तलाश थी.
भगवान ने सत्यव्रत नामक प्रतापी और दयालु राजा को इसके लिए योग्य पाया. सत्यव्रत इस महान कार्य में कितने योग्य साबित होंगे उसकी छोटी सी परीक्षा भी भगवान ने ली.
जब सत्यव्रत नदी में स्नान कर रहे थे उसी समय श्रीहरि ने एक छोटी मछली का रूप धरा और उनकी अंजलि में आ गए. राजा ने अंजुली में आई मछली को वापस पानी में छोड़ना चाहा.
तभी मछली मनुष्यों के स्वर में बोल पड़ी- हे दयालु और विद्वान राजा सत्यव्रत मैंने आपकी बड़ी प्रशंसा सुनी है. आपके पराक्रम और ज्ञान दोनों से ही मैं प्रभावित होकर आपका दर्शन करने आई थी. उसी समय मुझ पर बड़ी मछलियों ने आघात किया.
बड़ी कठिनाई से प्राण बचाकर मैं आपकी अंजुलि में समा गई क्योंकि प्राण रक्षा का इससे सुरक्षित स्थान मुझे कोई और लगा परंतु आप तो मुझे पुनः उसी जल में प्रवाहित कर रहे हैं जहां से मैं किसी प्रकार भागकर आई हूं.
हे विद्वान नरश्रेष्ठ! आपको बताने की आवश्यकता नहीं कि जल का यही विधान है कि बड़ी मछली छोटी मछली को खा जाती है. जलीय जीवन का क्रम यही है. आपकी अंजलि से मुक्त होते ही मुझे भी कोई बड़ी मछली खा जाएगी. मैं आपकी शरणागत हूं, आप मेरी रक्षा करिए.
मछली के इस करूण प्रार्थना सेराजा सत्यव्रत को दया आ गई. उन्होंने मछली को प्राणरक्षा का वचन दिया और उसे अपने कमंडल में रख लिया.
मछली का आकार बढ़ने लगा. वह कमंडल में नहीं समा पा रही थी तो राजा ने उसे एक मटके में रख दिया. कुछ ही पलों में मछली बढ़कर मटके के आकार की हो गई और छटपटाने लगी.
राजा ने मटके से निकालकर एक विशाल तालाब में मछली को रख दिया. रात भर में बढ़कर मछली ने पूरे तालाब को घेर लिया. छोटी सी मछली के लिए दो दिनों में ही विशाल तालाब छोटा पड़ने लगा तो सत्यव्रत समझ गए कि यह कोई मछली नहीं है बल्कि मछली के रूप में कोई देव हैं जो परीक्षा लेने आए हैं.
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