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भक्ति ऐसा भाव है जिससे भक्त भगवान के साथ स्वयं को जोड़ लेता है. ईश्वर के साथ अपना रिश्ता किस विधि जोड़ेगा, इस पर कोई बंधन नहीं होना चाहिए. यह कथा बताती है कि एक धर्मात्मा ने भक्ति की विधि प्रजा पर थोपी तो क्या गति हुई.
राजा भुवनेश बहुत प्रतापी धार्मिक राजा थे. एक हजार अश्वमेध और दस हजार वाजपेय यज्ञ करवाए. हर यज्ञ में सवा लाख से ज्यादा गाएं दान कीं. परंतु राजा को एक विचित्र सनक थी.
उसके राज्य में वैदिक विधि के अतिरिक्त अन्य किसी प्रकार से भक्तिभाव और पूजा-पाठ की अनुमति न थी. ब्राह्मण, क्षत्रिय,वैश्य कोई भी पूजा-पाठ में भगवान को प्रसन्न करने के लिए संगीत का प्रयोग नहीं कर सकता था.
बस शूद्रों और महिलों के लिए इसकी छूट थी. जो भी कीर्तन करता, भजन गाता पकड़ा जाता उसे कड़ा दंड़ मिलता. राजा भुवनेश के राज में हरिमित्र नाम के एक विष्णुभक्त ब्राह्मण थे.
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