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भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी को अनंत चतुर्दशी नाम से जाना जाता है. इस दिन भगवान विष्णु की पूजा की जाती है. अनंत पूजा के लिए कोई शुभ मुहूर्त नहीं देखा जाता यानि यह पूरा दिन ही शुभ होता है. इस व्रत की पूजा प्रायः दोपहर में की जाती है.
शास्त्रों में इस व्रत को किसी पवित्र नदी या सरोवरतट पर करने का विधान है. यदि ऐसा संभव न हो तो घर के पूजा स्थान की सफाई करते वहां कलश स्थापित कर पूजा करें. कलश पर शेषशायी भगवान् विष्णु की प्रतिमा रखें या कलश के समीप भगवान की तस्वीर ही रख लें.
कलश पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुश से निर्मित अनंत की स्थापना की जाती है. निम्नमंत्र से आह्वान कर भगवान अनंत की पूजा का संकल्प लें.
भगवान अनंत के आह्वान का मंत्रः
मम् अखिल पापक्षयपूर्वक शुभफल वृद्धये श्रीमद् अनन्त प्रीतिकामनया अनन्तव्रतमहं करिष्ये।
कलश पर या उसके पास चौदह गांठ वाला अनन्त सूत्र जो कच्चे सूत का डोरा होता है उसे रखें. इसके बाद ‘ॐ अनन्ताय नमः’ मंत्र से भगवान विष्णु सहित अनन्त सूत्र का षोडशोपचार पूर्वक गंध, अक्षत, धूप दीप, नैवेद्ध आदि से पूजन करें. षोडषोपचार पूजा के लिए प्रभु शरणम् एप्पस का पूजन विधि सेक्शन देखें.
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