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देवराज इंद्र और धर्मात्मा तोते की यह कथा महाभारत से है. कहानी कहती है, अगर किसी के साथ ने अच्छे वक्त दिखाए हैं तो बुरे वक्त में उसका साथ छोड़ देना ठीक नहीं.
शिकारी की आंखों में शानदार शिकार मिलने की चमक थी. उसने अपना वह तीर चलाया जो सबसे खतरनाक ज़हर से बुझा था. पर निशाना ज़रा सा चूक गया. वह सोने जैसी चमकदार चमड़ी वाला हिरण तो उछ्ल कर भाग गया, तीर एक फलते फूलते पेड़ में जा लगा.
तीर गहरे तक धंस गया था, पेड़ में उसका जहर फैल गया. पेड़ सूखने लगा. पत्ते झड़ने लगे. ठूंठ बनते इस पेड़ को उसपर रहने वाले सभी पक्षी एक एक कर उसे छोड़ गये. इसी पेड़ के एक कोटर में एक धर्मात्मा तोता बहुत बरसों से रहा करता था.
तोता पेड़ को छोड कर नहीं गया. बल्कि तोता अब तो ज्यादातर पेड़ पर ही रहता. दाना पानी न मिलने से वह धर्मात्मा तोता भी सूख कर कांटा हुआ जा रहा था. यह बात धीरे धीरे जंगल से लेकर देवराज इंद्र तक पहुंची.
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