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यह सुनते ही एक ने अपनी परेशानी बतानी शुरू की लेकिन वह अभी कुछ शब्द ही बोल पाया था कि बीच में किसी और ने अपनी बात कहनी शुरू कर दी.

सभी जानते थे कि आज के बाद महात्माजी से बात करने का मौका नहीं मिलेगा. इसलिए वे सब जल्दी से जल्दी अपनी बात रखना चाहते थे. एक दूसरे की बात को काटते हुए सभी बोलने लगे.

कुछ ही देर में वहां का दृश्य मछली-बाज़ार जैसा हो गया और अंततः महात्माजी को बोलना पड़ा- कृपया शांत हो जाइए! अपनी-अपनी समस्या एक पर्चे पर लिखकर मुझे दीजिए. सभी ने अपनी-अपनी समस्याएं लिखकर दे दीं.

महात्माजी ने सारे पर्चे एक टोकरी में डालकर मिला दिए. फिर बोले- टोकरी सबके पास जाएगी. हर व्यक्ति एक पर्ची उठाएगा और उसे पढ़ेगा. उसके बाद निर्णय लेना होगा कि क्या वह अपनी समस्या को इस समस्या से बदलना चाहता है?

हर व्यक्ति एक पर्चा उठाता, उसे पढता और सहम सा जाता. एक-एक कर के सभी ने पर्चियां देख लीं पर कोई भी अपनी समस्या के बदले किसी और की समस्या लेने को तैयार नहीं था.

सबका यही सोचना था कि उनकी समस्या चाहे कितनी ही बड़ी क्यों न हो पर बाकी लोगों की समस्या जितनी गंभीर नहीं है. सभी अपनी-अपनी पर्ची लेकर लौटने लगे. वे खुश थे कि उनकी समस्या उतनी बड़ी भी नहीं है जितना कि वे सोचते थे.
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