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संत ने आगे कहा- जो भगवान का हो गया, उसका मानों दूसरा जन्म हो गया. अब वह पापी नहीं रहा, साधु हो गया. जो भजन करता है उसको साधु ही मानना चाहिए. कारण कि उसने निश्चय कर लिया है कि परमेश्वर के भजन के समान अन्य कुछ भी नहीं है.

चोर वहीं बैठा सब सुन रहा था. उस पर बातों का बड़ा असर हुआ.

उसने दृढ़ निश्चय कर लिया कि मैं अभी से भगवान की शरण लेता हूं. अब कभी चोरी नहीं करूंगा. मैं भगवान का हो गया.

सत्संग के बाद लोग निकलने लगे. सिपाहियों ने चोर को पहचान लिया और उसको पकड़ के राजा के सामने पेश किया. राजा ने चोर से पूछा- इस महल में तुम्हीं ने चोरी की है न? सच-सच बताओ, तुमने चुराया धन कहाँ रखा है?

चोर ने दृढ़तापूर्वक कहा- महाराज! इस जन्म में मैंने कोई चोरी नहीं की.

सिपाही बोला-महाराज! यह झूठ बोलता है. हम इसके पदचिह्नों को पहचानते हैं. इसके पदचिह्न चोर के पदचिह्नों से मिलते हैं, इससे सिद्ध होता है कि चोरी इसी ने की है.

राजा ने चोर की परीक्षा लेने की आज्ञा दी, जिससे पता चले कि वह झूठा है या सच्चा.

चोर के हाथ पर पीपल के ढाई पत्ते रखकर उसको कच्चे सूत से बाँध दिया गया. फिर उसके ऊपर लाल तपता लोहा रखा परंतु उसका हाथ जलना तो दूर रहा, सूत और पत्ते भी नहीं जले.

लोहा नीचे जमीन पर रखा तो वह जगह काली हो गयी.

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2 COMMENTS

    • आपके शुभ वचनों के लिए हृदय से कोटि-कोटि आभार.
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