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राजा जनक बोले, ‘संसार में जो कुछ भी है वह आज नहीं तो कल नष्ट हो जाने वाला है. उसे मैं बचा नहीं सकता. यह मेरे अधिकार में कैसे हुआ. हमारे धर्मग्रंथ और शास्त्र कहते हैं कि कोई ऐसी चीज ही नहीं है जो अधिकार में लेने लायक है.

ऐसे में कोई अधिकारी कैसे बन सकता है. इसलिये मैं किसी भी चीज पर अपना अधिकार नहीं समझता न मैं किसी का अधिकारी हूं.

अब जहां तक अपने को समूची धरती का अधिकारी समझने की बात है तो मैं अपने लिये कुछ नहीं करता. जो भी करता हूं, वह देवता, अपने पितर, प्रजा और अतिथि सेवा के लिए करता हूं. इसलिए पृथ्वी,जल, वायु और आकाश पर अपना अधिकार समझता हूं.

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