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आपको रामायण की एक क्षेपक कथा सुनाते हैं. क्षेपक कथाएं मुख्य ग्रंथ में तो नहीं होतीं लेकिन इन्हें मुख्य कथाओं को बल देने के लिए रचा जाता है. इन्हें प्रामाणिक मानें न मानें पर इनमें भक्ति का भाव भरपूर होता है.
रावण हठी था. तप की उसमें अद्भुत क्षमता थी. उसने शिवजी को तो तप से प्रसन्न ही कर रखा था. ब्रह्माजी को भी तप से कई बार प्रसन्न किया. एक बार रावण ने ब्रह्मा जी को प्रसन्न किया और उनसे अमरत्व का वरदान मांगा.
ब्रह्माजी ने कहा- अमरत्व का वरदान देना संभव ही नहीं है. पृथ्वी मृत्यु लोक है. यहां जो आएगा उसे जाना ही पड़ेगा. यह नियम तो परमात्मा तक पर लागू है. कुछ और मांग लो.
रावण ने कहा- यह तो बताना संभव है कि मेरी मृत्यु किसके हाथों होगी, यही बताइए. ब्रह्माजी दुविधा में पड़ गए. कैसे बताया जाए, मृत्यु का कारण, वह समझाते रहे लेकिन रावण माना ही नहीं. कुछ और वरदान लेने को तैयार ही न था.
विवश होकर ब्रह्मा जी ने उसे बता ही दिया कि त्रेता युग में श्रीहरि राजा दशरथ के पुत्र श्रीराम के रूप में अवतार लेंगे. उनके हाथों ही तुम्हारी मृत्यु लिखी गई है.
ज्ञानी होने के बावजूद रावण में अहंकार इतना आ गया कि उसने ब्रह्मा को ही चुनौती देने की ठान ली. उसने तय किया कि वह अपनी शक्तियों से ब्रह्मा का लिखा बदलकर रहेगा.
उसने श्रीराम का जन्म ही न हो, इसको ध्यान में रखकर कई प्रयास किए. उस समय अयोध्या में श्रीराम के परदादा राजा रघु शासन करते थे. रावण महाराज रघु के पास पहुंचा और उनको युद्ध के लिए ललकारा.
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