शुकदेव ने राजा परीक्षित को भागवत की कथा सुनानी प्रारंभ की
श्री हरिविष्णु शेषशैया पर योगनिद्रा में लीन थे. उनकी नाभि से एक विशाल डंठल वाला कमल खिला. चौदह पंखुड़ियों वाले उस दिव्य कमलपुष्प पर आसन लगाए ब्रह्मा प्रकट हुए.
आपने चार सिर से चारों दिशाओं पर नजर रखने वाले ब्रह्मा ने कौतुहल में अपने उद्गम का केंद्र खोजा परंतु उन्हें कुछ भी दिखाई नहीं पड़ा. हर ओर शून्य ही दिखा.
उद्गम केंद्र की खोज करते ब्रह्मा ने कमल डंठल के भीतर प्रवेश किया. वह उसकी गहराई में समाते चले गए लेकिन उन्हें उसका कोई ओर-छोर नहीं मिला.
ब्रह्मा वापस कमल पर लौट आए. उन्हें जिज्ञासा हुई कि वह कौन हैं, कहां से उत्पन्न हुए, उनके उत्पन्न होने का उद्देश्य क्या है. इन्ही विचारों में वह ध्यानलीन हुए.
उन्हें अपने भीतर एक शब्द सुनाई दिया “तपस तपस”. ब्रह्मा ने सौ वर्षों का ध्यान लगाया. ब्रह्मा को भगवान विष्णु की प्रेरणा ध्वनि सुनाई दी.
समय बर्बाद न करो. सृष्टि की रचना के लिए तुम्हारी उत्पत्ति हुई है. इसलिए शीघ्र ही अपना कार्य आरंभ करो. ब्रह्मा ने श्रीहरि को प्रणाम कर सृष्टि निर्माण आरंभ किया.
ब्रह्मा ने अपने शरीर से कई रचनाएं कीं लेकिन उन्हें अपनी रचना पर संतोष न हुआ. सबसे पहले स्थूल जगत की रचना हुई. फिर उन्होंने चार मुनियों की रचना की.
सनक, सनन्दन, सनातन और सनत कुमार इन चारों कुमारों ने संतान पैदा करने से यह कहते हुए मना कर दिया कि हम बालक ही रहेंगे.
सनकादि नाम से विख्यात चारों मुनि निवृति के मार्ग पर चले गए. ब्रह्मा ने उन्हें रोकने का प्रयास किया किंतु वे नहीं रूके. ब्रह्मा क्रोधित हुए तो उनकी भौहों से एक बालक निकला.
वह बालक जन्म लेते ही रोने लगा. इसलिए उसका नाम रूद्र हुआ. ब्रह्मा ने भगवान विष्णु की शक्ति से दस तेजस्वी मानस पुत्र उत्पन्न किए.
उनके नाम हुए- मारीचि, अत्रि, अंगिरा, पुलह, पुलत्स्य, क्रतु, वशिष्ठ, दक्ष, भृगु और नारद. उन्होंने मुख से एक पुत्री वाग्देवी को उत्पन्न किया.
नारद पूर्व सृष्टि के पूर्वजन्म के आशीर्वचन से अपना सत्य स्वरुप नहीं भूले थे – तो उन्होंने श्रीहरि विष्णु की भक्ति में ही जीवन जीने का निर्णय लिया.
ब्रह्मा ने अपने शरीर के दो अंश किए. एक अंश से पुरुष और दूसरे से स्त्री प्रकट हुई. पुरुष स्वयंभावु मनु थे और स्त्री का नाम था शतरूपा. शतरूपा मनु की पत्नी बनीं.
ब्रह्मा ने मनु-शतरूपा को संतान उत्पन्न करने का आदेश दिया. चूंकि पृथ्वी रसातल में समाई हुई थी सो मनु-शतरूपा ने ब्रह्मा से पूछा कि वे और उनकी संताने कहां रहेंगी?
ब्रह्मा चिंतामग्न हो गए और अपने सृजनकर्ता श्रीहरि का स्मरण करने लगे. तभी पृथ्वी के रसातल से उद्धार के लिए श्रीहरि ब्रह्मा की नाक से वराह रूप में प्रकट हुए.
अंगूठे के आकार का वराह देखते-देखते पर्वत के समान विशाल जीव हो गया. वराह अवतार में प्रभु ने हिरण्याक्ष का वध किया और पृथ्वी को रसातल से निकाल लाए.
पृथ्वी को जल के ऊपर स्थित करके वराह अवतार श्रीहरि विलीन हो गए. मनु और शतरूपा की पांच संतानें हुई- प्रियव्रत और उत्तानपाद पुत्र हुए, आकूति, देवहुति एवं प्रसूति कन्याएं.
मनु ने आकूति का विवाह रुचि प्रजापति, देवहुति का कर्दम ऋषि और प्रसूति का दक्ष प्रजापति से किया. इन कन्याओं की संतानों से सारा संसार भर गया.
ब्रह्मा अपनी लावण्यमयी और गुणवान “वाकदेवी” पुत्री को देखकर उन पर मोहित हो गए. किन्तु निर्विकार पुत्री उनकी ओर ऐसे कोई भाव न रखती थीं.
ब्रह्मा के मारीचि आदि पुत्रों ने समझाया कि इससे पूर्व किसी ब्रह्मा ने ऐसा नहीं किया. आप सृष्टा होकर पुत्री से कामभाव रखेंगे तो सृष्टि किस दिशा में अग्रसर होगी?
अपने पुत्रों की बात से ब्रह्मा लज्जित हुए. उन्होंने तप के द्वारा तत्काल अपने शरीर का त्याग कर दिया. त्यागी हुई देह ने सब दिशाओं में भयंकर अंधकार रूप ले लिया.
ब्रह्मा ने तप के प्रभाव से पुनः शरीर धारण किया और श्रीहरि द्वारा दिए गए सृष्टि के निर्माण कार्य की सिद्धि में जुट गए.
मनु और शतरुपा की संतानों ने सृष्टि चलाने के लिए संतान उत्पन्न करना आरंभ किया. उससे पृथ्वी पर मनुष्यों का आगमन हुआ.
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संकलन व संपादनः प्रभु शरणम्