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तुम्हें नारायण का प्रिय सेवक होने का अहंकार है. तुमने हमें मृत्युलोक का वासी समझकर रोका इसलिए तुम तीन बार मृत्युलोक में जन्म लोगे और नारायण के लिए शत्रुभाव रखोगे.

ऋषियों के शाप से जय और विजय दुखी हुए. वह उनसे क्षमा मांगते हुए नारायण के ह्रदय से दूर न करने की विनती करने लगे. कोलाहल सुनकर नारायण वहां आए.

नारायण ने कहा- ऋषिकुमारों का शाप व्यर्थ नहीं जा सकता. उस शाप को मैं स्वीकार करता हूं. मैं भी तीन बार अवतार लेकर इनका वध करके शापमुक्त करूंगा. फिर ये मेरी सेवा में तैनात होंगे.

ऋषि कुमारों ने भी नारायण से अपने क्रोध और उसके कारण हुई पीड़ा के लिए क्षमा मांगी और प्रभु की स्तुति करके लौट गए.

ब्रह्मा बोले- दिति के गर्भ में ये जय और विजय आए हैं. ये विष्णु द्रोही होंगे और इन्हें मारने के लिए स्वयं नारायण को आना होगा.

दिति अपने गर्भ को और न बांध सकीं. उनके शरीर से दो असुर हिरण्यकश्यप और हिरण्याक्ष निकले जो जन्म लेते ही पर्वत के समान विशालकाय हो गए.

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2 COMMENTS

  1. sir mujhe apki aur se sunai ja rahi shri mad bhagwat katha bahaut he achhi lag rahi hai kripya karke aap isey har roz sunaiye dhanyawad

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