श्रीरामचंद्रजी के प्रभाव को साक्षात समझकर सतीजी लौट आई हैं. भोलेनाथ उनसे पूछते हैं कि कैसे परीक्षा ली आपने तो घबराई सती महादेव से असत्य कहती हैं.

चौपाई :
सतीं समुझि रघुबीर प्रभाऊ। भय बस सिव सन कीन्ह दुराऊ॥
कछु न परीछा लीन्हि गोसाईं। कीन्ह प्रनामु तुम्हारिहि नाईं॥1॥

सतीजी ने श्रीरघुनाथजी के प्रभाव को समझकर डर के मारे शिवजी से छिपाव किया और कहा- हे स्वामी! मैंने कोई परीक्षा नहीं ली. वहाँ गई और बस आपकी ही तरह प्रणाम किया.

जो तुम्ह कहा सो मृषा न होई। मोरें मन प्रतीति अति सोई॥
तब संकर देखेउ धरि ध्याना। सतीं जो कीन्ह चरित सबु जाना॥2॥

आपने जो कहा वह असत्य नहीं हो सकता, मुझे इस बात का पूरा विश्वास है. तब शिवजी ने ध्यान लगाकर देखा और सतीजी ने जो भी किया था, उन्हें सब पता चल गया.

सती महादेवी हैं किंतु उन्हें मतिभ्रम हुआ है. सती ने श्रीराम की परीक्षा ली इससे महादेव को पीड़ा हुई है लेकिन वह इसे भी श्रीराम की लीला समझते हैं.

बहुरि राममायहि सिरु नावा। प्रेरि सतिहि जेहिं झूँठ कहावा॥
हरि इच्छा भावी बलवाना। हृदयँ बिचारत संभु सुजाना॥3॥

फिर श्रीरामचन्द्रजी की माया को सिर नवाया, जिसने प्रेरणा करके सती के मुंह से भी झूठ कहला दिया. भोलेनाथ ने मन में विचार किया कि हरिइच्छा रूपी भावी प्रबल है.

सतीं कीन्ह सीता कर बेषा। सिव उर भयउ बिषाद बिसेषा॥
जौं अब करउँ सती सन प्रीती। मिटइ भगति पथु होइ अनीती॥4॥

सतीजी ने श्रीराम की परख के लिए सीताजी का वेष धारण किया, यह बात शिवजी के हृदय में बड़ी पीड़ा दे रही है. वह सोचते हैं कि यदि मैं अब सती से प्रीति करता हूं तो भक्तिमार्ग लुप्त हो जाता है और बड़ा अन्याय होता है.

श्रीरामचंद्रजी भोलेनाथ के आराध्य हैं. श्रीराम भी भोलेनाथ की पूजा करते हैं. परमात्मा के बीच संबंध ही ऐसा है जिसे समझना असंभव है. आराध्य को उपासक पितातुल्य समझता है.

महादेव के सामने एक बड़ी दुविधा है. स्वयं उनकी अर्धांगिनी सती ने आराध्य की प्रिया का स्वरूप ले लिया था. हरि की माया से ग्रस्त सती ने कुछ पलों के लिए ही सही, सीताजी का रूप तो धऱ लिया और सीताजी शिव के लिए माता समान हैं.

“हरि इच्छा भावी बलवाना सुजाना” महादेव चिंतन में हैं. वह हरि इच्छा को समझने का प्रयास कर रहे हैं. सती में सीता का रूप दिखा है. अतः सती के प्रति अब पत्नी का भाव रखना उचित न होगा क्योंकि इससे भक्तिमार्ग खंडित होता है.

कल देखेंगे कि समस्त संसार को राह दिखाने वाले भोलेनाथ स्वयं किंकर्तव्यविमूढ़ हैं, निर्णय में कठिनाई की अनुभूति कर रहे हैं. यह प्रसंग कल

संकलन व संपादनः राजन प्रकाश

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