याज्ञवल्कय ऋषि पार्वतीजी के तप का वर्णन सुनाने के बाद भरद्वाज मुनि से शिवजी के चरित का बखान कर रहे हैं. शिवजी जगत के सर्वश्रेष्ठ संन्यासी हैं. वह पृथ्वी पर विचरते हुए श्रीराम कथाएं सुना रहे हैं. श्रीरामजी शिवजी से मिलने आते हैं.
उन्होंने शिवजी को पार्वतीजी के असाध्य व्रत-संकल्प के दृढ़ता से पालन का स्मरण कराया और उनसे वचन मांगा कि वह पार्वतीजी पर कृपा करें. उन्हें स्वीकार लें.
सतीजी के शरीर त्याग के बाद शिवजी पुनर्विवाह को उचित नहीं मानते किंतु श्रीरामजी के वचन भी तो ठुकरा नहीं सकते. अतः पार्वतीजी के तप को पूर्ण करने का अनुरोध स्वीकार लेते हैं. पार्वतीजी की मनोकामना पूर्ण होने वाली है. आज की रामकथा में यही प्रसंग
जब तें सतीं जाइ तनु त्यागा। तब तें सिव मन भयउ बिरागा॥
जपहिं सदा रघुनायक नामा। जहँ तहँ सुनहिं राम गुन ग्रामा॥4॥
जब से सतीजी ने अपने शरीर का त्याग किया, तब से शिवजी के मन में वैराग्य उत्पन्न हो गया. वह समाधि में रहकर सदा श्री रघुनाथजी का नाम जपने लगे और हर स्थान श्रीरामचन्द्रजी के गुणों की कथाएं सुनाने लगे.
दोहा :
चिदानंद सुखधाम सिव बिगत मोह मद काम।
बिचरहिं महि धरि हृदयँ हरि सकल लोक अभिराम॥75॥
चिदानन्द, सुख के धाम, मोह, मद और काम से रहित शिवजी सम्पूर्ण लोकों को आनंद देने वाले भगवान श्रीहरि के स्वरूप श्रीरामचन्द्रजी को हृदय में धारण कर भगवान के ध्यान में मगन हुए और पृथ्वी पर विचरने लगे.
चौपाई :
कतहुँ मुनिन्ह उपदेसहिं ग्याना। कतहुँ राम गुन करहिं बखाना॥
जदपि अकाम तदपि भगवाना। भगत बिरह दुख दुखित सुजाना॥1॥
शिवजी कहीं मुनियों को ज्ञान का उपदेश करते और कहीं श्रीरामचन्द्रजी के गुणों का वर्णन करते थे. यद्यपि शिवजी निष्काम हैं, राग-द्वेष से परे हैं फिर भी वह भगवान अपनी भक्त सती के वियोग के दुःख से दुःखी हैं.
एहि बिधि गयउ कालु बहु बीती। नित नै होइ राम पद प्रीती॥
नेमु प्रेमु संकर कर देखा। अबिचल हृदयँ भगति कै रेखा॥2॥
शिवजी को इस प्रकार विचरते बहुत समय बीत गया. श्रीरामचन्द्रजी के चरणों में नित नई प्रीति हो रही है. शिवजी के कठोर नियम, अनन्य प्रेम और उनके हृदय में भक्ति की अटल टेक को श्रीरामचन्द्रजी ने भी देखा.
प्रगटे रामु कृतग्य कृपाला। रूप सील निधि तेज बिसाला॥
बहु प्रकार संकरहि सराहा। तुम्ह बिनु अस ब्रतु को निरबाहा॥3॥
तब कृतज्ञ कृपालु, रूप और शील के भण्डार, महान तेजपुंज भगवान श्रीरामचन्द्रजी प्रकट हुए. उन्होंने बहुत सुंदर वचनों से शिवजी की प्रशंसा की और कहा कि आपके अतिरिक्त और कोई नहीं है जो ऐसा कठिन व्रत निबाह सकता है.
बहुबिधि राम सिवहि समुझावा। पारबती कर जन्मु सुनावा॥
अति पुनीत गिरिजा कै करनी। बिस्तर सहित कृपानिधि बरनी॥4॥
श्रीरामचन्द्रजी ने बहुत प्रकार से शिवजी को समझाया और पार्वतीजी के जन्म के बारे में स्मरण कराया. कृपानिधान श्रीरामचन्द्रजी ने विस्तारपूर्वक पार्वतीजी के अत्यन्त पवित्र कार्यों का बखान किया.
दोहा :
अब बिनती मम सुनहु सिव जौं मो पर निज नेहु।
जाइ बिबाहहु सैलजहि यह मोहि मागें देहु॥76॥
यह कहकर श्रीरामजी ने भोलेनाथ से कहा- हे शिवजी! यदि मुझ पर आपका स्नेह है, तो अब आप मेरी विनती सुनिए. मैं आपसे वचन मांगता हूं कि आप पार्वती के साथ विवाह कर लें.
चौपाई :
कह सिव जदपि उचित अस नाहीं। नाथ बचन पुनि मेटि न जाहीं॥
सिर धरि आयसु करिअ तुम्हारा। परम धरमु यह नाथ हमारा॥1॥
श्रीरामजी के वचन सुनकर शिवजी बोले- यद्यपि ऐसा उचित नहीं है, परन्तु स्वामी की बात भी टाली नहीं जा सकती. हे नाथ! मेरा यही परम धर्म है कि मैं आपकी आज्ञा को सिरोधार्य करूं और उसका पालन करूँ.
मातु पिता गुर प्रभु कै बानी। बिनहिं बिचार करिअ सुभ जानी॥
तुम्ह सब भाँति परम हितकारी। अग्या सिर पर नाथ तुम्हारी॥2॥
माता, पिता, गुरु और स्वामी की बात को बिना ही विचारे शुभ समझकर मान लेना चाहिए. फिर आप तो सब प्रकार से मेरे परम शुभचिंतक हैं. हे नाथ! आपकी आज्ञा मेरे सिर पर है.
प्रभु तोषेउ सुनि संकर बचना। भक्ति बिबेक धर्म जुत रचना॥
कह प्रभु हर तुम्हार पन रहेऊ। अब उर राखेहु जो हम कहेऊ॥3॥
शिवजी की भक्ति, ज्ञान और धर्म से युक्त वचन रचना सुनकर प्रभु रामचन्द्रजी संतुष्ट हो गए. प्रभु ने कहा- हे हर! आपकी प्रतिज्ञा पूरी हो गई. अब हमने जो कहा है, आप उसे हृदय में रखें.
श्रीरामजी के साथ इस वार्तालाप के बाद शिवजी का मन शांत है. वह उनको दिए वचन का पालन करने के लिए उत्सुक हैं और सप्तर्षियों को बुलाते हैं. सप्तर्षियों को उन्होंने एक विशेष कार्य सौंपा. जैसे विवाह से पूर्व कन्या की जांच-परख होती है वही कार्य करने महादेवजी ने सप्तर्षियों को भेजा.
यह रसपूर्ण प्रसंग बहुत सुंदर है. महादेव की लीला का आनंद है इसमें. इसे कल सुनाउंगा.
संकलनः राजन प्रकाश