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बालक ने मांगा- हे विनायक मुझमें इतनी शक्ति दीजिए कि मैं अपने पैरों से चलकर अपने माता-पिता के साथ कैलाश पर्वत पर पहुंच सकूं और वे यह देख प्रसन्न हों.
श्रीगणेश से वरदान प्राप्त कर वह बालक कैलाश पर्वत पर पहुंच गया. अपने कैलाश पर्वत पर पहुंचने की कथा उसने भगवान महादेव को सुनाई. किसी बात पर पार्वतीजी, भोलेनाथ से रुष्ट हो गईं. बातचीत तक बंद हो गई. कैलाश पर रह रहे उस बालक को भी बात पता चली.
उसने शिवजी से कहा- जैसे माता ने कहा था कि गणेश पूजा करके तुम मेरा स्नेह प्राप्त करोगे. नाराज देवी को मनाने के लिए आप भी वही पूजन करिए. भक्त की बात पर भोलेनाथ मुस्कुराए.
वह देवी को प्रसन्न करने के लिए बालक के मन में बसे गणेश आराधना के भाव को बनाए रखना चाहते थे. इसलिए उन्होंने बालक से गणेश पूजा की विधि समझी और व्रत किया.
पुत्र के प्रति इस स्नेह के भाव से पार्वती खुश हो गईं. माता के मन से भगवान भोलेनाथ के लिये जो नाराजगी थी वह समाप्त हो गई.
गणेश को प्रथम पूजनीय बनाने से नाराज शिवपुत्र कार्तिकेय दक्षिण में निवास कर रहे थे. देवी को पुत्र से मिलने की बड़ी इच्छा हुई. वह पुत्र से मिलने को बेचैन हो गईं.
शिवजी ने युक्ति लगाई. उन्होंने पार्वती से कहा- पुत्र को प्राप्त करने के लिए तुम भी गणेश पूजन करो.
एक पुत्र से मिलन को व्याकुल माता ने दूसरे पुत्र की आराधना करनी शुरू कर दी. कार्तिकेय को खबर लगी. वह भागे-भागे कैलाश आए.
माता की पुत्र से भेंट की मनोकामना पूरी हुई. उस दिन से श्रीगणेश चतुर्थी का व्रत मनोकामना पूरे करने वाला व्रत माना जाता है.
संकलन व संपादनः राजन प्रकाश
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