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श्रीकृष्ण ने बर्बरीक को आशीर्वाद दिया, “हे वत्स! जब तक यह पृथ्वी नक्षत्र सहित विद्यमान है. जब तक सूर्य-चन्द्रमा विद्यमान हैं, तुम तब तक पूजनीय रहोगे. तुम देवियों के स्थानों में देवियों समान विचरते रहोगे.
अपने भक्तगणों में कुलदेव समान मर्यादा पाओगे. कल्याणकारी रूप में तुम भक्तों के वात-पित्त-कफ जनित रोगों का नाश करोगे. पर्वत की चोटी पर विराजमान होकर युद्ध देखो.
वासुदेव श्रीकृष्ण के वरदान के बाद देवियां अन्तर्धान हो गईं.
बर्बरीक जी का शीश पर्वत की चोटी पर पहुंच गया एवं बर्बरीकजी के धड़ का शास्त्रीय विधि से अंतिम संस्कार कर दिया गया. श्रीकृष्ण के आशीर्वाद से उनका शीश देवरूप में परिणत हो गया था.
कुरुक्षेत्र की रणभूमि से कुछ दूरी पर स्थित खाटूधाम में उनका शीशस्वरूप प्रकट हुआ. वही खाटूधाम है जहां श्रीश्याम बाबा के भक्त आकर उनके दर्शनकर आशीर्वाद लेते हैं और मोरवीनंदन श्याम बाबा उनकी मनोकामनाएं पूरी करते हैं.
(स्कन्दपुराण के माहेश्वर खंड अंतर्गत द्वितीय उपखंड “कौमारिका खंड” की कथा)
संकलनः महावीर प्रसाद सर्राफ “टीकम”
संपादनः राजन प्रकाश
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