भाद्रपद कृष्ण पक्ष की एकादशी अजा या कामिका एकादशी के नाम से जानी जाती है. इस दिन भगवान श्री कृष्णजी की पूजा का विधान होता है. अजा एकादशी व्रत में कई बातों का ध्यान रखना चाहिए.

दशमी तिथि की रात्रि में मसूर की दाल खाने से बचें. चने न खाएं, सब्जी में शाक न लें. शहद का सेवन न करें. इससे एकादशी व्रत के फल कम होते है. यदि भूल से खा लिया तो क्षमा प्रार्थना करें. व्रत के दिन और दशमी तिथि के दिन पूर्ण ब्रह्मचार्य का पालन करें.

अजा एकादशी व्रत पूजा

एकाद्शी तिथि के दिन शीघ्र उठना चाहिए. घर की सफाई करें और इसके बाद तिल और मिट्टी के लेप का प्रयोग करते हुए, कुशा से स्नान करना चाहिए. स्नान आदि कार्य करने के बाद, भगवान श्री कृष्णजी की पूजा करनी चाहिए.

भगवान श्री विष्णुजी का पूजन करने के लिए एक शुद्ध स्थान पर धान्य रखने चाहिए. धान्यों के ऊपर कलश स्थापित किया जाता है. कलश को लाल रंग के वस्त्र से सजाया जाता है. स्थापना के बाद उसकी पूजा की जाती है.

इसके पश्चात कलश के ऊपर श्रीविष्णुजी की प्रतिमा स्थापित करके व्रत का संकल्प लें. संकल्प के पश्चात धूप, दीप पुष्प से श्री विष्णु या कृष्ण जी की आरती की जाती है. दिनभर भगवान श्रीकृष्ण का अपनी मनोकामना के अनुरूप मंत्रों से ध्यान करें.

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अजा एकादशी की व्रत कथा

कुन्ती पुत्र अर्जुन श्रीकृष्ण से बोले- हे जनार्दन! अब आप कृपा करके मुझे भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी के विषय में भी बतलाइए! उस एकादशी का क्या नाम है तथा इसका व्रत करने की क्या विधि है ? उसका व्रत करने से क्या फल मिलता है ?

श्री कृष्ण बोले- “हे पार्थ ! भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को अजा कहते हैं. जो मनुष्य इस दिन भक्तिपूर्वक मेरी पूजा करते हैं तथा व्रत करते हैं, उनके समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं.

लोक और परलोक में सहायता करने वाली इस एकादशी व्रत के समान विश्व में दूसरा कोई व्रत नहीं है. अब ध्यानपूर्वक इस एकादशी की कथा सुनो –

प्राचीनकाल में आयोध्या नगरी में एक चक्रवर्ती राजा राज्य करता था- उसका नाम हरिश्चतन्द्र था. वह अत्यन्त वीर, प्रतापी तथा सत्यवादी था. दैवयोग से उसने अपना राज्य स्वप्न में विश्वामित्र को दान कर दिया और परिस्थितिवश उसे अपनी पत्नी और पुत्र को भी बेच देना पड़ा.

स्वयं वह एक चाण्डाल का सेवक बन गया. उसने उस चाण्डाल के यहां कफन लेने का काम किया परन्तु उसने इस आपत्ति के काम में भी सत्य को न छोड़ा. जब इसी प्रकार उसे कई वर्ष बीत गये तो उसे अपने इस नीच कर्म पर बड़ा दुःख हुआ.

वह इससे मुक्तस होने का उपाय खोजने लगा. वह सदैव इसी चिन्ता में रहने लगा कि मैं क्या करुं? किस प्रकार इस नीच कर्म से मुक्ति पाऊं? एक समय की बात है, वह इसी चिन्ता में बैठा था कि गौतम ऋषि वहां आ पहुंचे.

राजा ने उन्हें प्रणाम किया और अपनी दुःखभरी कथा सुनाने लगा. राजा की दुःखभरी कहानी सुनकर महर्षि गौतम भी दुःखी हुए और बोले- हे राजन्! भाद्रपद के कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम अजा है. तुम उस एकादशी का विधिपूर्वक व्रत करो तथा रात्रि जागरण करो. इससे तुम्हारे समस्त कष्ट दूर हो जायेंगे.

गौतम ऋषि राजा से इस प्रकार कहकर अन्तर्धान हो गये. अजा नाम की एकादशी आने पर राजा ने मुनि के कहे अनुसार विधिपूर्वक व्रत तथा रात्रि-जागरण किया. उसी व्रत के प्रभाव से राजा के समस्त कष्ट मिट गए. उस समय स्वर्ग में नगाड़े बजने लगे तथा पुष्पों की वर्षा होने लगी.

उसने अपने सामने ब्रह्मा, विष्णु, महादेवजी तथा इन्द्र आदि देवताओं को खड़ा पाया. उसने अपने मृतक पुत्र को जीवित तथा स्त्री को वस्‍त्र तथा आभूषणों से युक्त देखा. व्रत के प्रभाव से उसको पुनः राज्य मिला.

वास्तव में ऋषि विश्वामित्र ने राजा की परीक्षा लेने के लिए यह सब कौतुक किया था किन्तु अजा एकादशी के व्रत के प्रभाव से सारा षड्‌यंत्र समाप्त हो गया और अन्त समय में राजा हरिश्चन्द्र अपने परिवार सहित स्वर्ग लोक को गया.

हे राजन् ! यह सब अजा एकादशी के व्रत का प्रभाव था. जो मनुष्य इस व्रत को विधिपूर्वक करते हैं तथा रात्रि-जागरण करते हैं उनके समस्त पाप नष्टि हो जाते हैं और अन्त में वे स्वर्ग जाते हैं. इस एकादशी की कथा के सुनने मात्र से ही अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है.

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