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आइए संक्षेप में जानते हैं शिवतत्व जो शिवपुराण में आया है. ब्रह्माजी ने इसे नारदजी को बताया था.

1.चारों वर्णों ब्राह्मण, क्षत्रिय, वैश्य, शूद्र वर्ण के लोगों के लिए शिवलिंग के पूजन की एक ही विधि है.

2.शिवजी की प्रतीक रूप में लिंग पूजा ही प्रचलित है. इसमें सारे जगत का लय अंतनिर्हित है इसीलिए इसका नाम लिंग है.

3. शिवजी की वेदी को भगवती पार्वती और लिंग को साक्षात शिव मानकर पूजन करना चाहिए.

4. प्रातःकाल ब्रह्ममुहूर्त में उठकर सर्वप्रथम अपने गुरू और इष्ट भगवान शंकर का प्रातः वंदन और स्मरण करना चाहिए.

5. स्नान के लिए रखे जल में सभी तीर्थों, समुद्रों, नदियों, पवित्र सरोवरों के जल का आह्वान करना चाहिए.

6. इसके उपरांत शिव-शिव का लगातार जप करते हुए आचमन करना चाहिए. फिर जल को सिर से लगाकार स्नान आरंभ करना चाहिए.

7. शुद्ध वस्त्र धारण करके एकांत में बिछे आसन पर बैठकर प्राणायाम और वंदना करनी चाहिए.

8. इसके उपरांत शिवलिंग में भगवान शिव का आह्वान करके पाद्य, अर्घ्य और आचमनीय अर्पण करके दुग्ध, दही, मधु, घी और जल जिससे भी अभिषेक करना हो, शिवलिंग का अभिषेक करना चाहिए.

9. इसके बाद फूल, चंदन, धूप-दीप समर्पित करते हुए नमस्कार करके यह प्रार्थना करनी चाहिए-

अज्ञानाद्यदि वा ज्ञानाज्जपपूजादिकं मया।
कृतं तदस्तु सफलं कृपया तव शंकर।।

(हे भगवान शंकर मैं अज्ञानी हूं. मैं भक्तिभाव से आपका पूजन कर रहा हूं. आप इसे स्वीकार करें. आपकी कृपा से मेरे सारे अनुष्ठान फलीभूत हों.

10. प्रसीद देवदेवेश देहमाविश्य मामकम् ।
विमोचयैनं विश्वेश घृणया च घृणानिधे ॥

(हे देवाधिदेव मेरी पूजा को स्वीकार करें और यहां पर प्रकट हों ताकि मैं आपका विधिवत पूजन कर सकूं.)

11. शिवे भक्तिः शिवे भक्तिः शिवे भक्तिर्भवे भवे।
अन्यथा शरणं नास्ति त्वमेव शरणं मम्।।

(इस संसार में शिवभक्ति ही समस्त सुखों को प्राप्त करने का हेतु है. हे भगवान शिव मैं आपकी शरण में हूं. मुझे अपने शरण में रखें.)

12. सेव्यः सेव्यः सदा देवः शंकरः सर्व दुःखहा।
त्याज्यं तदर्चनं नैव कदापि सुखमीप्सुभिः।।

(नित्यप्रति अनन्य भाव भाव से आराध्यदेव एकमात्र भगवान शंकर हैं. सुख के इच्छुक प्राणियों को उनके पूजन से कभी विमुख नहीं होना चाहिए.)

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